आधार की संवैधानिक वैधानिकता को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं से गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि सरकार के साथ अपना एड्रेस प्रूफ शेयर करने में उन्हें क्या परेशानी है, जबकि उन्हें प्राइवेट पार्टियों के साथ जानकारी शेयर करने में कोई परेशानी नहीं है.
मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘अगर आपको इंश्योरेंस चाहिए तो आप प्राइवेट पार्टी के पास जाते हैं. अगर आपको फोन चाहिए तो आप प्राइवेट पार्टी के पास जाते हैं. अगर प्राइवेट कंपनी आपसे एड्रेस प्रूफ मांगती है, तो आपको कोई दिक्कत नहीं. लेकिन सरकार मांगती है तो ये आपकी पहचान से जुड़ जाता है.’
पांच जजों की संवैधानिक बेंच में से एक जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘अगर आप नौकरी के लिए अप्लाई करते हैं, तो वे सबसे पहले आपका एड्रेस प्रूफ मांगते हैं और आपकी सैलरी किसी प्राइवेट बैंक में जमा की जाती है.’
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए श्याम दीवान से जस्टिस एके सीकरी ने कहा, ‘आपकी दलील ऐसी लगती है कि अगर मैं अपना पासबुक उन्हें दूंगा, तो वे मेरी बैंक निकासी जानना चाहेंगे. मुझे नहीं लगता कि ये कोई मामला है.’
दीवान ने कहा कि एक जानी पहचानी प्राइवेट पार्टी और एक अनजानी प्राइवेट कंपनी के साथ जानकारी साझा करने में अंतर है. उन्होंने कहा, ‘सवाल ये है कि क्या सरकार एक प्राइवेट पार्टी को जानकारी देने के लिए लोगों को मजबूर कर सकती है, जोकि यूआईडीएआई के कंट्रोल से पूरी तरह बाहर है और वह उस जानकारी को व्यावसायिक तौर पर उपयोग करने के लिए स्वतंत्र है.’
इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि कोर्ट यह जानना चाहेगा कि यूनिक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने पर्सनल डाटा को सुरक्षित रखने के लिए क्या उपाय किए हैं.
दीवान ने कहा कि तर्क ये है कि आधार का नामांकन स्वैच्छिक था, लेकिन अगर इसको सभी सेवाओं के लिए जरूरी बना दिया जाता है तो ये पूरी तरह एकेडमिक एक्सरसाइज हो जाएगा. इंट्रोड्यूसर सिस्टम- इसमें व्यक्ति को अपनी पहचान के लिए किसी आधार कार्ड होल्डर का रेफरेंस देना होता है – का जिक्र करते हुए दीवान ने कहा कि इसका मकसद ये था कि जिसके पास कोई पहचान नहीं है उनको एक पहचान मिल जाएगी, जैसा कि सरकार का दावा था, और आधार इसमें मदद कर रहा था.
लेकिन सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के मुताबिक 93 करोड़ आधार धारकों में केवल 2 लाख 19 हजार 096 लोग ही इंट्रोड्यूसर सिस्टम के तहत आए हैं. ये पूरे आधार सिस्टम की परिकल्पना का सिर्फ 0.0003 फीसद है.
उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ताओं की चिंता ये है कि निजी नामांकनकर्ताओं द्वारा एकत्रित जानकारी की सत्यता पर संसद में अपने बयान के जरिए सरकार ने मुहर लगाई है. परिणामस्वरूप यूआईडीएआई ने भी इस तरह की कार्रवाई की.
दीवान ने कहा कि 10 अप्रैल 2017 को दिए गए बयान में कहा गया है कि पिछले 6 सालों में सरकार ने 34 हजार ऑपरेटरों को ब्लैकलिस्ट और कैंसिल किया है, जिन्होंने सिस्टम से छेड़छाड़ की कोशिश की. दिसंबर 2016 के बाद से 1 हजार ऑपरेटरों के खिलाफ एक्शन लिया गया है. लेकिन 12 सितंबर 2017 की खबर के मुताबिक यूआईडीएआई ने पाया कि प्राइवेट प्लेयर्स अब भी सिस्टम का उल्लंघन कर रहे हैं, जिसके बाद 49,000 हजार ऑपरेटरों को ब्लैकलिस्ट किया गया है.