सुप्रीम कोर्ट में आधार की अनिवार्यता को लेकर सुनवाई चल रही है. इसकी वैधता पर सवाल उठाते हुए याचिकाकर्ता श्याम दीवान ने पिछली सुनवाई के दौरान आधार को अनिवार्य करना नागरिकों के अधिकारों की हत्या बताया था. आज कोर्ट में बेंच के सामने संवैधानिक वैधता के मामले में याचिकाकर्ताओं की तरफ से कपिल सिब्बल ने भी कुछ दिलचस्प सवाल उठाए.
आधार की अनिवार्यता मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड और जस्टिस अशोक भूषण की बेंच कर रही है. इस संबंध में पूर्व मंत्री और वकील सिब्बल ने बेंच के सामने अपनी बात रखी तथा इसकी कई खामियों के बारे में अपनी दलीलें दीं.
बेंच के सामने कपिल सिब्बल की दलीलें
आधार कार्ड को लेकर की जा रही सारी प्रक्रिया गलत है क्योंकि आधार की जानकारी लेने में चेकमार्क नहीं है.
किसी सामान्य नागरिक के चुनने का अधिकार अनुछेद 21 के तहत संवैधानिक अधिकार है. प्रक्रिया और सामग्री वाजिब होनी चाहिए.
मेरी पात्रता विधवा या अनुसूचित जाति या जनजाति के तौर पर मेरा स्टेट्स है और इसका मेरी पहचान से कोई लेना देना नहीं है. ऐसे में मेरे स्टेट्स को कैसे इनकार किया जा सकता है कि मेरे पास आधार कार्ड नहीं है.
आधार कार्ड के दूरगामी परिणाम होंगे क्योंकि पीढ़ियों तक आधार नंबर का इस्तेमाल किया जाएगा.
किसी को नहीं पता कल क्या होगा न ही बेंच को और न ही विशेषज्ञों को.
सूचना एक बड़ी शक्ति है, अगर राज्य को ये शक्ति दे दी गई तो वह इसका इस्तेमाल अपनी मर्जी से करेगा. ऐसा इससे पहले कभी नहीं किया गया था.
किसी भी टेक्नोलॉजी को हैक किया जा सकता है क्योंकि ऐसा करना आसान है. दुनिया में ऐसी कोई टेक्नोलॉजी नहीं जिसका दुरुपयोग नहीं किया जा सकता. किसी को बर्बाद करने के लिए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल आराम से किया जा सकता है.
किसी व्यक्ति की अगर निचली जानकारी हैक हो गई तो उसे दुबारा पहले की स्थिति में नहीं लाया जा सकता.
निजी कंपनियां इसका इस्तेमाल अपने मुनाफे के लिए कर सकती हैं. कंपनियां आधार के माध्यम से सूचना आसानी से हासिल कर सकती हैं और उसे लोगों के बारे में जितनी जानकारी होगी वह अपने प्रोडक्ट अच्छी तरह से बेच सकेंगी.
जिस तरह से बोतल से एक बार जिन्न निकल गया तो वापस नहीं आ सकता, उसी तरह आज के तकनीकी दौर में ये कहना एकदम सही होगा कि एक बार व्यक्तिगत सूचना लोगों के बीच आ गई तो उसके घातक परिणाम हो सकते है.