कृषि कानूनों के विरोध में किसान आंदोलन उत्तर प्रदेश भर में तेजी से फैलता जा रहा है. पश्चिम यूपी को तेजी से अपनी जद में लेने के बाद किसान आंदोलन की आंच मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गढ़ पूर्वांचल तक पहुंच गई है. भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत गुरुवार को पूर्वांचल के बस्ती जिले के मुंडेरवा में कृषि कानूनों के खिलाफ किसान महापंचायत को संबोधित करेंगे. पश्चिमी यूपी के बाद पूर्वांचल में शुरू हो रही किसान पंचायत बीजेपी के लिए चिंता बढ़ा सकती है.
किसान आंदोलन को लंबा खिंचता देख किसान नेता भी लंबी लड़ाई की तैयारी में जुटे हैं. वे वेस्ट यूपी के बाद पूर्वी उत्तर प्रदेश और अन्य इलाकों में किसान पंचायत कर किसानों को जोड़ने में जुटे हैं ताकि सरकार पर दबाव बन सके. इसीलिए जो लोग दिल्ली बॉर्डर नहीं पहुंच सकते, उनके इलाकों में भारतीय किसान यूनियन किसान पंचायत करने की रणनीति अपनाई है.
भारतीय किसान यूनियन के प्रमुख नरेश टिकैत ने कहा कि दिल्ली बॉर्डर पर पश्चिमी यूपी के किसान तो बड़ी तादाद में शामिल हो रहे हैं, लेकिन पूर्वी यूपी के किसानों को वहां पहुंचने में हजारों किलोमीटर का सफर करना पड़ता है. इसीलिए हम यूपी के तमाम जिलों में किसान पंचायत कर किसानों को कृषि कानूनों के बारे में बता रहे हैं. नरेश टिकैत ने कहा कि नए कृषि कानूनों से छोटे किसानों को ज्यादा नुकसान होगा. नरेश टिकैत ने कहा, हमें छोटे किसानों को बचाना है, बड़े किसान तो फिर भी बच जाएंगे.
नरेश टिकैत बोले कि कृषि कानून के खिलाफ हम ये देख रहे हैं कि किसानों में कितना रोष और गुस्सा है. पंचायतें और महापंचायतें हो रही हैं. जो कभी इतने बड़े पैमाने पर नहीं हुई हैं, लेकिन सरकार अभी जिद पर अड़ी है. ऐसे में हम किसानों को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं. वह कहते हैं कि पूर्वांचल के जिलों में होने वाली यह पंचायतें किसानों को जोड़ेंगी जो दिल्ली की सीमाओं तक नहीं पहुंच सकते. उन्हें हम इस कानून की खामियों को किसानों को बताने का काम कर रहे हैं.
वरिष्ठ पत्रकार सुभाष मिश्रा कहते हैं कि किसान आंदोलन पश्चिम यूपी से अब पूर्वांचल के जिलों में फैल रहा है, वो वाकई सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी के लिए चुनौती बढ़ा सकती है. पश्चिम यूपी से ज्यादा पूर्वांचल के किसानों की हालत दयनीय है. यहां न तो यहां पश्चिम यूपी तरह मंडियां हैं और न ही उचित उनकी फसल का उचित रेट मिलता है. वहीं, बस्ती के बेल्ट में गन्ने की अच्छी फसल होती है, लेकिन सरकार ने मूल्य नहीं बढ़ाए हैं. ऐसे में किसानों की अपनी नाराजगी है, जिसे भारतीय किसान यूनियन की पंचायतें और बढ़ा सकती हैं. यूपी में पंचायत चुनाव हैं और अगले ही साल विधानसभा चुनाव हैं. ऐसे में किसान महापंचायतें सरकार के लिए परेशानी बढ़ा सकती हैं.
दरअसल, भारतीय किसान यूनियन को पूर्वांचल में साख जमाने के लिए बस्ती की धरती काफी मुफीद रही है. वाम दलों ने भी किसानों को जागरूक करने और किसान आंदोलन को पूर्वांचल में धार देने के लिए बस्ती जिले पर ही फोकस किया था. माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में बस्ती किसान आंदोलन को पूर्वांचल में धार देने में भूमिका निभाएगा. यही वजह है कि नरेश टिकैत कृषि कानून के खिलाफ बस्ती में किसान पंचायत कर रहे हैं.
मुंडेरवा पूर्वांचल में चीनी मिल आंदोलन को लेकर पूर्व में भी सुर्खियों में रहा है. लंबे समय तक बंद पड़ी मुंडरेवा चीनी मिल को दोबारा से शुरू करवाने के लिए भारतीय किसान यूनियन आंदोलन के लोग लंबे समय तक यहां धरने पर बैठे हैं. दिंसबर 2002 में इसी चीनी मिल को खुलवाने के आंदोलन में तीन किसानों की पुलिस फायरिंग में जान भी चली गई थी. तभी से हर साल भारतीय किसान यूनियन मुंडेरवा शहीद किसानों की याद में शहीद किसान मेले का आयोजन करती है, जिसमें नरेश टिकैत पहुंचते हैं.