किसानों और केंद्र सरकार के बीच पांचवें दौर की अहम बैठक से पूर्व किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा है कि इस समस्या का समाधान तभी निकलेगा जब किसान अपना कानून खुद बनायेंगे। उन्होंने कहा कि हम किसी भी ऐसे कानून को स्वीकार नहीं करेंगे, जो बिना हमसे पूछे चुपचाप बनाकर हमारे ऊपर थोप दिया गया है।
इसके पहले यूपीए शासन के दौरान भूमि अधिग्रहण कानून पर भी किसानों और केंद्र सरकार में मतभेद हुआ था, लेकिन उसका समाधान तभी निकल पाया जब कानून बनाने में किसानों को भी उचित भागीदारी दी गई। किसान अब उसी तर्ज पर नए कानून में भी भागीदारी चाहते हैं।
भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने मीडिया से विशेष बातचीत के दौरान कहा कि अगर आज की वार्ता से कोई हल नहीं निकलता है तो इसके बाद किसान सरकार के बुलावे पर नहीं आएंगे। इसके बाद अब वार्ता की तारीख़ सरकार नहीं, बल्कि किसान देंगे और उसे हमारी शर्तों पर बात के लिए आगे आना होगा।
उन्होंने कहा कि सरकार को इस मानसिकता से बाहर आना होगा कि वो चाहे जो कानून बनाकर चाहे जब हमारे ऊपर थोप देगी। इस आंदोलन का सबसे अच्छा संदेश यह जाना चाहिए कि आगे से किसानों या मजदूरों से जुड़ा कोई भी कानून बनाया जाये, तो उससे पहले उसके बारे में उसकी राय पूछी जाए। साथ ही कानून बनाने में किसान-मजदूर संगठनों के कुछ प्रतिनिधि अवश्य शामिल होने चाहिए।
दिल्ली को चारों तरफ से घेरकर आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई बाधित कर कानून बनाने का दबाव डालना कितना उचित है? इस सवाल पर किसान नेता ने कहा कि किसानों ने किसी का रास्ता नहीं रोका है, किसान तो केवल दिल्ली जाना चाहते थे, लेकिन सरकार ने ही हमें आगे बढ़ने से रोक दिया। जहां सरकार ने रोका, हम वहीं जम गए।
उन्होंने कहा कि किसानों को कोई जल्दी नहीं है। सरकार को सोचने के लिए जितना वक्त चाहिए, ले सकती है। हम यहां 26 जनवरी की परेड में अपने ट्रैक्टरों के साथ शामिल होंगे। अगर सरकार से बातचीत से कोई समाधान नहीं निकलता है तो हम यहां से वापस जाने के लिए तैयार नहीं हैं। अगर सरकार अपने रुख पर अडिग है तो हम भी पीछे हटने के लिए नहीं आये हैं।