सांसद आजम खां की परेशानी कम होने का नाम नहीं ले दे रही है। जौहर ट्रस्ट के लिए खरीद गई 66 हेक्टेयर जमीन सीलिंग की जद में आ गई है। ऐसे में यह जमीन राज्य सरकार में समाहित हो सकती है। इसको लेकर जिलाधिकारी की कोर्ट में वाद दायर किया गया है, जिसे एडीएम (वित्त) की कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया है।
जौहर ट्रस्ट के नाम पर 2005 से लेकर अब तक लगभग 66 एकड़ जमीन खरीद गई थी। मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली सपा सरकार की कैबिनेट एक के फैसले में जौहर ट्रस्ट द्वारा खरीदे जाने वाली जमीन पर स्टांप शुल्क से छूट दी गई थी।
ट्रस्ट के नाम पर जो 66 एकड़ जमीन की खरीद गई है उसके लिए स्टांप शुल्क का भुगतान नहीं किया गया है। कैबिनेट से जो प्रस्ताव पास हुआ था उसमें एक शर्त भी थी कि ट्रस्ट की ओर से लोकहित से जुड़े कार्य कराने होंगे। अल्पसंख्यक, गरीब बच्चों की निशुल्क शिक्षा देनी होगी।
इस मामले की शिकायत भाजपा लघु उद्योग प्रकोष्ठ के क्षेत्रीय संयोजक आकाश सक्सेना ने मुख्यमंत्री से की थी। उन्होंने कहा था कि ट्रस्ट की ओर से चैरिटी का कोई कार्य नहीं किया जाता है।
ट्रस्ट के सारे पदाधिकारी और सदस्य आजम खां के परिवार के और नजदीकी लोग हैं। मुख्यमंत्री के आदेश के बाद एसडीएम सदर को इसकी जांच सौंपी गई थी। एसडीएम की जांच में आरोप सच पाए गए। एसडीएम ने अपनी रिपोर्ट जिलाधिकारी को सौंप दी थी।
उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि यह जमीन सीलिंग के दायरे में आ गई है। एसडीएम की रिपोर्ट के बाद शुक्रवार को राजस्व संहिता की धारा 82 (2) का उल्लंघन के आरोप में वाद दायर किया गया है।
जिलाधिकारी ने वाद को एडीएम (वित्त) की कोर्ट को स्थानांतरित कर दिया है। एडीएम (वित्त एवं राजस्व) की कोर्ट में अब इस मामले की सुनवाई होगी। एडीएम की ओर से इस मामले में ट्रस्ट के अध्यक्ष और अन्य पदाधिकारियों को नोटिस जारी किया जाएगा।
कोट
एसडीएम की रिपोर्ट के आधार पर जौहर ट्रस्ट की ओर से खरीदी गई जमीनों के मामले में डीएम की कोर्ट में वाद दायर किया गया है, जिसे एडीएम (वित्त) की कोर्ट को स्थानांतरित कर दिया गया है। एडीएम ( वित्त) इस मामले की सुनवाई करेंगे। नियमानुसार 66 हेक्टेयर जमीन राज्य सरकार में समाहित की जा सकती है।
जौहर ट्रस्ट से यदि 66 हेक्टेयर जमीन वापस भी ले ली जाती है तो भी यूनिवर्सिटी पर कोई असर नहीं पड़ेगा। जिलाधिकारी आंजनेय कुमार सिंह ने बताया कि जमीन से यूनिवर्सिटी का कोई मतलब नहीं है। वहां चलने वाली पढ़ाई-लिखाई पर भी कोई असर नहीं पड़ेगा। यह मसला सिर्फ 66 हेक्टयर जमीन के मालिकाना हक का है। अगर जमीन का मालिकाना हक भी राज्य सरकार के पास चली जाती है तो भी यूनिवर्सिटी चलती रह सकती है।