आखिर क्यों, अपने विदेशी मेहमानों को गुजरात ले जाते हैं मोदी?

आखिर क्यों, अपने विदेशी मेहमानों को गुजरात ले जाते हैं मोदी?

2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से अहमदाबाद दुनिया के बड़े नेताओं की मेजबानी का केंद्र बनकर उभरा है. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे और अब इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की मेजबानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अहमदाबाद में की है.आखिर क्यों, अपने विदेशी मेहमानों को गुजरात ले जाते हैं मोदी?

ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए अहमदाबाद इतना महत्वपूर्ण क्यों है? ऐसा क्या है जो अहमदाबाद को मोदी के लिए इतना खास बना देता है, जो राजनयिक दौरों के समय अप्रत्यक्ष रूप से भारत की दूसरी राजधानी बन जाता है.

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि मोदी की कोशिश गुजरात के विकास को दुनिया भर के नेताओं को दिखाने की है. गुजरात की इंडस्ट्री को दुनिया के किसी भी इंडस्ट्रियल क्षेत्रों के मुकाबले स्थापित करने की कोशिश है. आर्थिक आंकड़ों को देखें, तो गुजरात, इंडस्ट्री के मामले में देश का सर्वोपरी राज्य है और यहां की जीडीपी राष्ट्रीय सकल उत्पाद में सबसे महत्वपूर्ण योगदान रखती है.

बीजेपी नेता जीवीएल नरसिम्हा राव ने इसे न्यू इंडिया की न्यू डिप्लोमेसी करार दिया है. वे कहते हैं कि अगर प्रधानमंत्री परंपरागत तरीके से मेजबानों को होस्ट करते, तो शायद इतनी कवरेज नहीं मिलती. और न ही दुनिया भर की निगाहें देश के दूसरे हिस्सों में हुए विकास पर जातीं.

उन्होंने यह भी कहा कि द्विपक्षीय संबंधों की मेजबानी सड़कों पर करने से जनता भी इसमें शामिल होती है और दो देशों के संबंधों में जीवंतता आती है. हालांकि जीवीएल के बयान से पूर्व राजनयिक राजीव डोगरा सहमत नजर नहीं आते हैं.

डोगरा कहते हैं कि ठीक है कि आप दो देशों के संबंधों में पब्लिक को शामिल करना चाहते हैं, लेकिन दो देशों के संबंधों में प्रतीकात्मक चीजें बहुत महत्वपूर्ण नहीं होती हैं. आपका सहयोगी देश इन सब चीजों को बहुत ज्यादा प्राथमिकता नहीं देता है. 

पहली बार सितंबर 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अहमदाबाद में मेजबानी की थी. एक दिवसीय दौरे पर अहमदाबाद पहुंचे शी जिनपिंग का साबरमती रिवर फ्रंट पर शाही स्वागत हुआ. भारत-चीन संबंधों में चाहे जितना उतार चढ़ाव हो, लेकिन जब भी मोदी की मेजबानी की बात आती है, तो जिनपिंग को झूला झुलाते मोदी की तस्वीरें आज भी टीवी स्क्रीन पर तैरती नजर आती हैं.

सितंबर 2017 में एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अहमदाबाद को मेजबानी के लिए चुना, इस बार मेहमान थे मोदी के खास करीबी और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे… दोनों नेताओं ने अहमदाबाद में बुलेट ट्रेन परियोजना की नींव रखी और मोदी ने आबे को सिद्धि सैय्यद मस्जिद घुमाया. साथ ही शिंजो आबे को प्रधानमंत्री ने अपने मुख्यमंत्री काल में विकसित किए साबरमती रिवर फ्रंट को भी दिखाया.

शी जिनपिंग, आबे के बाद अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की मेजबानी की है. नेतन्याहू के साथ मोदी की खूब छनती है और मोदी के इजरायल दौरे के बाद भारत-इजरायल संबंधों में एक नई गरमाहट देखी जा रही है.

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दिल्ली के बजाय अहमदाबाद और गांधीनगर में वैश्विक नेताओं की मेजबानी करने का पीएम मोदी का एजेंडा साफ है. उनका मकसद अहमदाबाद के विकास को दिखाना और बतौर मुख्यमंत्री अपने महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट्स के साथ विकास के मॉडल पर मुहर लगवाना है.

हालांकि यह बात ध्यान रखी जानी चाहिए कि इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी ने भी बड़े मौकों पर अपने मेहमानों को दिल्ली के बाहर होस्ट किया है. पाकिस्तान के साथ शिमला समझौते के लिए इंदिरा गांधी ने जुल्फिकार भुट्टो की मेजबानी खातिर हिमाचल को चुना, तो करगिल के बाद आगरा शिखर सम्मेलन के लिए अटल बिहारी वाजपेयी ने परवेज मुशर्रफ को ताजनगरी आगरा बुलाया.

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