आखिर कौन है दिल्ली के रहने वाले जयकिशन, वापस ला चुके हैं हजारों लोगों की आंखों की रोशनी

चांदनी चौक के दृष्टिहीन जयकिशन अग्रवाल अंधियारे की टीस में उजियारे का रास्ता दिखा रहे हैं। वर्ष 1985 से अब तक उन्होंने 57,500 लोगों को नेत्रदान का संकल्प दिलाया है। संकल्पित कई लोगों का निधन के बाद नेत्रदान हुआ। जयकिशन के मानवता की सेवा का संकल्प केवल इतना भर नहीं है। वह रक्तदान कैंप भी लगवाते हैं, जिसमें अब तक 3500 से अधिक यूनिट रक्त एकत्रित किए गए हैं। वह ऐसे परिवार से आते हैं, जिसमें देश व मानव प्रेम भरा है। पिता मदन लाल अग्रवाल स्वतंत्रता सेनानी थे। वह लाहौर की जेल में कई माह बंद रहे थे। आजादी मिली तो उनके योगदान को भारत सरकार ने सराहा और ताम्रपत्र से सम्मानित किया। 75 वर्षीय जयकिशन 100 फीसद दृष्टिहीन हैं। वह कहते हैं- मेरी आंखों में रोशनी तो नहीं आ सकती, पर दूसरों के जीवन में उजाला जरूर लाया जा सकता है।

इस अतुलनीय योगदान के लिए उन्हें वर्ष 1998 में राष्ट्रीय पुरस्कार व 1990 में दिल्ली राज्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वह लोगों को जागरूक करने के लिए दिल्ली के विभिन्न स्थानों के अलावा दूसरे राज्य भी जाते हैं। इसमें उनका परिवार भी पूरा साथ देता है। दरीबा कलां में उनका टूर-ट्रैवल का ऑफिस है, जिसे अब बेटे संभालते हैं। ऑफिस के एक कोने से जयकिशन की समाज सेवा का अभियान भी चलता है। वह संकल्प लेने वाले को कहते हैं कि इसकी जानकारी वह परिवार वालों को दे दें, जिससे उनके निधन पर चार घंटे के भीतर नेत्रदान हो सके। वर्ष 1985 से एम्स अस्पताल के साथ मिलकर उन्होंने नेत्रदान के लिए लोगों को प्रेरित करना शुरू किया। इसके बाद गुरुनानक आई सेंटर व वेनु आई इंस्टीट्यूट से भी वह जुड़े। हालांकि, शुरू-शुरू में लोगों को नेत्रदान के लिए रजामंद करने में दिक्कतें आई, लेकिन अब नेत्रदान के इच्छुक खुद ही उनसे संपर्क करते हैं, इसलिए अब वह नेत्रदान के साथ अंगदान का भी संकल्प करवाने लगे हैं।

लगाते हैं नेत्रदान का विशेष कैंप

चांदनी चौक में रामलीला के दौरान उनका नेत्रदान का विशेष कैंप लगता है। वह आंख की दुर्लभ बीमारी रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा से पीड़ित हैं, जिसमें आंखों की रोशनी धीरे-धीरे चली जाती है। वर्ष 1991 में केंद्र सरकार द्वारा सरकारी खर्चे पर इलाज के लिए उन्हें रूस भेजा गया। तब चंद्रशेखर प्रधानमंत्री थे। रूस ने इस बीमारी के सफल इलाज का दावा किया था, पर वहां के डॉक्टर भी जयकिशन के आंखों की रोशनी नहीं लौटा सकें।

कोरोना के खिलाफ जंग में भी बढ़ाया मदद को हाथ

चाहे जम्मू-कश्मीर व उत्तराखंड में बाढ़ हो या नेपाल में भूकंप की त्रासदी। हर ऐसी आपदाओं में पीडि़तों की मदद के लिए वह लोगों से गुहार लगाते हैं। विशेष बात यह कि वह मदद नकद नहीं बल्कि चेक से लेते हैं। कोरोना के खिलाफ जंग में भी उन्होंने 3 लाख 90 हजार रुपये के 80 चेक जुटाए और उसे पीएम केयर्स फंड में दान किया।

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