हर त्योहार का एक मकसद होता है। लेकिन जब किसी भी त्योहार का हुक्म रब ने कायनात से फर्माया है, तो उसे पूरा करना उसके मानने वालों के लिए फर्ज हो जाता है। इस संसार को बनाने वाले रब ने जब सारी कायनात (इस सृष्टि) को बनाने के बाद इंसान को उसमें उतारा।तो उसने इंसान को हुक्म दिया कि, ‘हमने इंसान को उसके रब की इबादत करने के लिए पैदा किया है इंसान उसकी इबादत करे क्योंकि वो ही उसका पालनहार है।’
दुनिया में हर मजहब व धर्मों को मानने वाले सभी इंसान उसको पैदा करने वाले पालनहार रब की इबादत अपने तरीके से करते हैं। वह अपने रब को खुश करने की कोशिश करते हैं। दुनिया के सारे मजहबों में अपने रब को खुश करने की अलग-अलग पूजा विधियां हैं।
रब को खुश करने के तरीकों में सबसे मुख्य कुर्बानी यानी त्याग, तप, इबादत साधना आदि है। इंसान कुर्बानी अपने तन से, मन से, समय से, धन से, तपस्या आदि से करते हैं। मालिके हकीकी ने भी अपने बंदों को उसकी इबादत करने के तरीके, कायदे भी बतलाए हैं।
ताकि बंदा वह करे जो वह चाहता है। या जो उसे पसंद है अल्लाह के खास बंदे उसके नबीयों मेसेंजर्स व उसके पसंदीदा बंदो जिन्होंने अपने त्याग बलिदान इबादत से उसे राजी कर लिया। ऐसे नबीयों के अल्लाह को राजी करने के तरीकों को पर भी अपने बंदों को वैसा ही करने का हुक्म दिया गया है।
अल्लाह जब अपने बंदों की कुर्बानी त्याग तपस्या से खुश हो जाता है तो अपने बंदों को खुशियां मनाने का भी हुक्म देता है। इंसान, रब की याद में खाना पीना छोड़कर उसकी इबादत रोजे/व्रत के रूप में करता है तो रोजे पूरे होने पर उसे ईद यानी खुशियां मनाने का भी हुक्म रब ही देता है।
लेकिन यह ईद उन्हीं के लिए होती है जिन्होंने अपने तन को तकलीफें दीं। अपने धन को गरीबों पर दान किया। दिन में पांच बार रब के सामने सजदा किया।