इंसान द्वारा चांद पर झंडा फहराने की घटना को आज 50 वर्ष पूरे हो गए हैं। यह घटना बीती सदी की सबसे बड़ी घटना है। 20 जुलाई 1969 को अपोलो लूनार मॉड्यूल ईगल से उतरकर नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने चांद की धरती पर पहला कदम रखा था। इसके करीब 19 मिनट बाद जिस शख्स ने चांद की धरती पर दूसरा कदम रखा था उसका नाम बज एल्ड्रिन था, जबकि तीसरे अंतरिक्षयात्री माइकल कोलिंस यान में ही मौजूद थे। आर्मस्ट्रॉन्ग और एल्ड्रिन ने चांद की धरती पर करीब 21 घंटे और 31 मिनट बिताए थे जो हमेशा के लिए इतिहास में दर्ज हो गए। इस ऐतिहासिक क्षण का सीधा प्रसारण दुनिया के 33 देशों में किया गया था ।
यादगार तस्वीर के पीछे की कहानी
एल्ड्रिन और आर्मस्ट्रॉन्ग की इस एतिहासिक यात्रा को कोई नहीं भुला सकता है। इस दौरान कई असाधारण फोटो भी क्लिक की गई थीं। इनमें से एक फोटो में अमेरिकी झंडे के आगे एक अंतरिक्षयात्री सैल्यूट करता हुआ दिखाई दे रहा है। इसके भी पीछे एक कहानी है। चांद की सतह पर अमेरिकी झंडा लगाना काफी मुश्किल काम था। लेकिन एक रॉड ने दोनों अंतरिक्ष यात्रियों की समस्या को हल कर दिया था। उस समय कैमरा आर्मस्ट्रॉन्ग के पास था और तभी एल्ड्रिन ने अमेरिकी झंडे को सल्यूट किया और दूसरी तरफ खड़े आर्मस्ट्रॉन्ग ने इस पल को अपने कैमरे में कैद कर लिया।
एल्ड्रिन और आर्मस्ट्रॉन्ग में थी काफी समानताएं
एल्ड्रिन और आर्मस्ट्रॉन्ग में कई सारी समानताएं थीं। दोनों ही फाइटर पायलट थे और दोनों ने ही कोरियाई युद्ध में बढ़चढ़कर हिस्सा लिया था। अमेरिका के न्यूजर्सी में पैदा हुए एल्ड्रिन को यूएस मिलिट्री अकादमी में थर्ड रैंक मिला था। 1951 में यहां से उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की थी। इसके बाद उन्होंने बतौर फाइटर पायलट यूएस एयर फोर्स ज्वाइन की थी। कोरियाई युद्ध में उन्होंने अमेरिका की तरफ से करीब 66 उड़ानें भरी और दो मिग-15 को मार गिराया। इसके बाद उन्होंने मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट से एस्ट्रॉनिक्स में डॉक्टरेट की डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्हें नासा के एस्ट्रॉनॉट ग्रुप-3 के लिए चुना गया।
नासा के लिए रिजेक्ट हो गए थे एल्ड्रिन
1962 में जब उन्होंने पहली बार नासा के एस्ट्रॉनाट ग्रुप के लिए एप्लाई किया था तब उन्हें इस बिनाह पर खारिज कर दिया गया था कि वे टेस्ट पायलट नहीं थे। 1961 में एस्ट्रॉनॉट ग्रुप-3 के लिए जब वह प्रतियोगी बने तो उस वक्त नियमों में कुछ बदलाव किए गए थे। नासा के मिशन में शामिल होने के लिए उस वक्त प्रतियोगी के पास जेट उड़ाने का 1000 घंटों का अनुभव बेहद जरूरी था। एल्ड्रिन के पास करीब 2500 घंटों का अनुभव था। वह 14 प्रतियोगियों में से चुने गए थे। इस ग्रुप में वह अकेले थे जिनके पास डॉक्टरेट की डिग्री थी। उनके रिसर्च के विषय की वजह से उनके साथ उन्हें Dr. Rendezvous कहकर बुलाते थे।
अवसाद का शिकार हुए एल्ड्रिन
1966 में उन्होंने पहली बार नासा के मिशन के तहत जेमिनी-12 से अंतरिक्ष की सैर की। इस दौरान उन्होंने करीब पांच घंटे अंतरिक्ष में गुजारे। इसके तीन वर्ष बाद उन्हें आर्मस्ट्रॉन्ग के साथ चांद के महत्वाकांक्षी मिशन पर जाने का अवसर मिला। 21 जुलाई 1969 को at 03:15:16 बजे वह चांद की धरती पर कदम रखने वाले दुनिया के दूसरे अंतरिक्षयात्री बने। एल्ड्रिन पहले अंतरिक्षयात्री हैं जिन्होंने चांद की धरती पर धार्मिक अनुष्ठान किया है। 1971 में नासा से विदाई के बाद वह यूएस एयरफोर्स टेस्ट पायलट स्कूल में कमांडेंट बने थे। 1972 में वह 21 वर्षों की सर्विस के बाद नासा से रिटायर हुए। एल्ड्रिन हमेशा से ही ब्रह्मांड में खोज करने और मंगल पर इंसानी मिशन के पक्षधर रहे हैं। एल्ड्रिन ने अपने मून मिशन की यादों को अपनी बायोग्राफी रिटर्न टू अर्थ और मैग्निफिसेंट डिसोलेशन में लिखा है। इसमें उन्होंने लिखा है कि नासा छोड़ने के बाद वह क्लिनिक डिप्रेशन के शिकार हो गए थे और बहुत ज्यादा शराब पीने लगे थे।
इंदिरा गांधी से मांगी माफी
अमेरिका के इस मिशन मून से जुड़ी कुछ रोचक जानकारी का ताल्लुक भारत के साथ भी है। दरअसल, भारत में इस एतिहासिक पल को देखने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को घंटों बैठे रहना पड़ा था। एक बार जब आर्मस्ट्रॉन्ग भारत आए तब इंदिरा गांधी के करीबी नटवर सिंह ने उनसे इस बात का जिक्र किया था। जब आर्मस्ट्रॉन्ग और इंदिरागांधी के बीच मुलाकात हुई तो आर्मस्ट्रॉन्ग ने उस लंबे इंतजार के लिए प्रधानमंत्री से माफी भी मांगी थी।