अमित शाह और वसुंधरा राजे में होगा महा मुकाबला

अमित शाह और वसुंधरा राजे में होगा महा मुकाबला

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे में कड़ा मुकाबला हो सकता है। अमित शाह नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत से मिलकर लौट रहे हैं, वहीं वसुंधरा राजे बृहस्पतिवार को दिल्ली आ रही हैं। दिल्ली में उनकी मुलाकात भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से होगी। वह अमित शाह, संगठन मंत्री रामलाल समेत अन्य से मिलेंगी। वसुंधरा के पास जहां राजस्थान सरकार और राज्य भाजपा संगठन में अपना दबदबा बनाए रखने की चुनौती है, वहीं भाजपा अध्यक्ष अमित शाह लोकसभा चुनाव से पहले प्रस्तावित राजस्थान विधानसभा के चुनाव में सत्ता में वापसी को सुनिश्चित करना चाहते हैं।अमित शाह और वसुंधरा राजे में होगा महा मुकाबला

 

भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की पहली चुनौती अभी राजस्थान में अपनी मन पसंद का प्रदेश अध्यक्ष चुनना है। प्रदेश अध्यक्ष के पद पर काबिज होने के बाद एकजुटता के साथ मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस से राजनीतिक मुकाबले की लड़ाई लड़ना है। गुटबाजी से भी पार पाना है। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की इस मंशा के सामानांतर वसुंधरा राजे के पास राज्य में अपने राजनीतिक वजूद को बनाए रखने की चुनौती है। 

वसुंधरा को पता है कि यदि प्रदेश भाजपा की कमान विरोधी गुट के नेताओं के पास चली गई तो आने वाली राह काफी चुनौती भरी होगी। जयपुर के सूत्र बताते हैं कि यही वजह है कि वसुंधरा लगातार अपने रुख पर अड़ी हुई हैं। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी के इस्तीफे के लिए भी वह बहुत मुश्किल से राजी हुई थी। उनकी यह दृढ़ता नये अध्यक्ष के चुनाव में भी ठीक उसी तरह से बनी हुई है। सूत्र बताते हैं कि यही वजह है कि राज्य में नये प्रदेश अध्यक्ष की औपचारिक घोषणा तथा ताजपोशी नहीं हो पा रही है।

जयपुर का रास्ता नागपुर से

जयपुर के सूत्र बताते हैं कि दिल्ली के मुख्यालय से जयपुर का रास्ता वाया नागपुर है। वसुंधरा राजे भाजपा की संस्थापकों में एक राजमाता विजया राजे सिंधियां की बेटी हैं। धौलपुर की महारानी वसुंधरा ने राजनीति दूध के साथ सीखी है। वह आसानी से हार नहीं मानती। भाजपा के शीर्ष नेता काफी समय से राजस्थान में संगठनात्मक फेरबदल चाहते हैं, लेकिन वसुंधरा यह बदलाव अपनी शर्तों पर चाहती हैं। 

यही वजह रही कि लंबे समय से राजस्थान में संगठनातमक बदलाव की कई बार कोशिश शुरू हुई और यू ही खत्म हो गई। काफी मशक्कत के बाद वसुंधरा ने अशोक परनामी को उनके पद से हटाने पर सहमति दी। इसके बाद परनामी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया, लेकिन उनका उत्तराधिकारी चुना जाना नाक का सवाल बना हुआ है। माना जा रहा है कि अमित शाह का नागपुर दौरा और संघ के शीर्ष पदाधिकारियों से भेंट मुलाकात में यह मुद्दा भी उठा है। चर्चा हुई है।

वसुंधरा की ताकत और कमजोरी

वसुंधरा की सबसे बड़ी ताकत उनकी पृष्ठभूमि, संघ में मजबूत पकड़ है। केन्द्र के कुछ नेताओं से भी वसुंधरा के अच्छे रिश्ते हैं और वह सुरक्षित राजनीतिक समीकरण बनाने में सफल हो जाती हैं। उनकी दूसरी बड़ी ताकत राजस्थान की मुख्यमंत्री होना तथा साढ़े चार साल का समय बिता ले जाना है। राज्य में अगले कुछ ही महीने बाद चुनाव प्रस्तावित हैं। 

वसुंधरा के पक्ष में तीसरी बड़ी बात यह है कि उनके बाद राजस्थान की राजनीति में उनका विकल्प आसानी से नहीं ढूंढा जा सकता। वह राज्य के नेताओं में तमाम विरोधियों के बावजूद अपने राजनीतिक हित को देखते हुए प्रभावी समीकरण बनाने में सफल हैं। आखिरी पक्ष यह है कि राजस्थान में हर पांच साल बाद सरकार बदल जाती है। कांग्रेस और भाजपा का शसन क्रमवार सत्ता में रहता है।

वसुंधरा की कमजोरी उनके विरोधियों की लगातार बढ़ती संख्या है। वुसंधरा ने न तो अपने किसी विरोधी को बहुत भाव दिया और न ही उन्हें मनाने की कोशिश की। इसमें कुछ केन्द्रीय मंत्री और नेता भी हैं। राज्य में इसी साल कुछ महीने बाद चुनाव होने हैं। चुनाव के दौरान सरकार प्रबल सरकार विरोधी लहर की संभावना व्यक्त की जा रही है। खुद प्रधानमंत्री की झुनझुनू में रैली में जोर से नारा लगा था-वसुंधरा तेरी खैर नहीं, मोदी तुझसे बैर नहीं।

उत्साह से भरा है शीर्ष नेतृत्व

भाजपा का शीर्ष नेतृत्व उत्साह से लबरेज हैं। इसका पहला कारण 19 राज्यों में सफलता पूर्व भाजपा की सरकार बनाने में मिली सफलता है। भाजपा का पूरे देश में व्यापक विस्तार है। संघ भाजपा के साथ टकराव के मूड में नहीं है और अपने अनुषांगिक संगठन से जहां तक संभव है तालमेल बनाकर चल रहा है। आशय यह कि हर संभव भाजपा के शीर्ष नेतृत्व और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ खड़ा है। 

विश्व हिन्दू परिषद में राघव रेड्डी, प्रवीण भाई तोगडिय़ा के स्थान पर कोकजे को कमान देने के लिए हुआ प्रयास भी है। बताते हैं संघ के हस्तक्षेप से ही म.प्र. और राजस्थान के प्रदेश भाजपा अध्यक्षों को इस्तीफा देना पड़ा। उनके उत्तराधिकारी का रास्ता बन सका है। लिहाजा पार्टी की केन्द्रीय ईकाई भी लगातार अपने रुख पर अड़ी है।

 
 

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