इंदौर। चोइथराम अस्पताल में अब लिवर ट्रांसप्लांट सर्जरी की जा सकेगी। सभी नियम व शर्तें पूरी करने के बाद मंगलवार को एमजीएम मेडिकल कॉलेज ने अस्पताल को अधिकृत अनुमति-पत्र जारी किया। अस्पताल का भी दावा है कि ऑर्गन डोनेशन होने पर इंदौर के मरीज को सबसे पहले लिवर मिलेगा।
इंदौर में लिवर ट्रांसप्लांट शुरू करने की कोशिश एक साल से चल रही थी। चोइथराम अस्पताल में भी लंबे समय से इसकी तैयारी की जा रही थी। दो महीने पहले अस्पताल ने मेडिकल कॉलेज से अनुमति मांगी थी। हालांकि कॉलेज की ओर से दिए गए अनुमति-पत्र में यह शर्त रखी गई है कि पहले दस सर्जरी लिवर ट्रांसप्लांट विशेषज्ञ सर्जन की निगरानी में होंगे।
इनके सफलतापूर्वक ट्रांसप्लांट के बाद केस चोइथराम अस्पताल के विशेषज्ञ संभालेंगे। यही शर्त मेदांता अस्पताल के सामने हार्ट ट्रांसप्लांट के लिए रखी गई है। मेडिकल कॉलेज के प्रभारी डीन डॉ. संजय दीक्षित ने बताया कि इंदौर में यह पहला अस्पताल है, जिसे लिवर ट्रांसप्लांट की अनुमति दी गई है। इससे उन मरीजों को फायदा मिलेगा जो भारी खर्च के कारण बड़े प्रदेशों में ट्रांसप्लांट नहीं करा सके।
अस्पताल तैयार, दिल्ली के लिवर इंस्टिट्यूट से एमओयू
चोइथराम अस्पताल के सीनियर गेस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट डॉ. अजय जैन ने बताया हम लिवर ट्रांसप्लांट के लिए तैयार हैं। जब भी कैडेवर डोनेशन की स्थिति बनेगी, अस्पताल में आसानी से लिवर ट्रांसप्लांट होगा। यहां सर्जन, डॉक्टर व नर्सिंग की टीम प्रशिक्षण ले चुकी है। दिल्ली के इंस्टिट्यूट ऑफ लिवर और बिलियरी साइंस के साथ एमओयू साइन हुआ है। पहली 10 सर्जरी उनके विशेषज्ञों के निर्देशन में ही किया जाएगा।
पहले इंदौर को मिलेगा मौका
– अब जब भी अगला ग्रीन कॉरिडोर बनेगा तो सबसे पहले इंदौर के मरीजों को मौका मिलेगा।
– यदि शहर में लिवर और हार्ट ट्रांसप्लांट के लिए मरीज नहीं मिलते हैं तो प्रदेश के दूसरे अस्पतालों को दिए जाएंगे। अभी तक की जानकारी के मुताबिक भोपाल के दो अस्पतालों के पास लिवर ट्रांसप्लांट की अनुमति है।
– प्रदेश में ट्रांसप्लांट के लिए मरीज नहीं हैं तो रोटो (रीजनल ऑर्गन ट्रांसप्लांट एंड टिशु ऑर्गनाइजेशन) से पूछना होगा। इस क्षेत्र का रोटो मुंबई स्थित केईएम अस्पताल है। इंदौर उसी के अधीन है।
– रोटो से भी यदि कोई मरीज नहीं मिलता है तो नोटो (नेशनल ऑर्गन ट्रांसप्लांट एंड) से संपर्क किया जा सकता है। वो देशभर के किसी भी अस्पताल में संपर्क इसे डोनेट कर सकता है।
– यदि देश में भी कोई मरीज नहीं मिले, तब यह इंटरनेशनल ऑर्गन ट्रांसप्लांट एंड टिशु ऑर्गनाइजेशन से संपर्क किया जा सकता है।
तीन बड़ी खामी और समन्वय का अभाव उजागर
– प्रदेश में कितने अस्पतालों को ट्रांसप्लांट की अनुमति, इसकी सार्वजनिक सूची नहीं है।
– डायरेक्टर मेडिकल एजुकेशन, स्वास्थ्य विभाग, स्थानीय प्रशासन के पास भी इसकी जानकारी उपलब्ध नहीं होना।
– शिकायत के पहले तक नोटो और रोटो दोनों जिम्मेदार एजेंसियों ने न स्थानीय प्रशासन और न ही अस्पतालों को आगाह किया। इससे कई लिवर प्रदेश के बाहर चले गए। हो सकता है कि उसमें से कुछ प्रदेश के मरीजों को मिल सकते थे।
हम सिर्फ इंदौर के अस्पताल को ही अलॉट कर सकते हैं अंग
एमजीएम मेडिकल कॉलेज सिर्फ स्थानीय स्तर पर अंग देने के लिए अधिकृत है, इसलिए हम सिर्फ शहर के अस्पतालों को ही अंग अलॉट कर पाएंगे। स्टेट ऑर्गन डोनेशन एंड टिशु ऑर्गनाइजेशन (सोटो) नहीं होने से प्रदेश के किसी अस्पताल को अलॉट करने के लिए हमें रोटो या नोटो को ही सूचना देना होगी। वे ही अंग अलॉट कर पाएंगे। –डॉ. संजय दीक्षित, प्रभारी डीन, एमजीएम
एमजीएम मेडिकल कॉलेज और एम्स के बीच किसको मिलेगा सोटो
इंदौर में बढ़ते अंगदान की प्रवृत्ति और पारदर्शिता रखने के लिए सोटो बनाए जाने की मांग तेजी से उठने लगी है। केंद्र सरकार ने जहां भोपाल के एम्स को सोटो बनाए जाने का प्रस्ताव दिया है। वहीं एमजीएम मेडिकल कॉलेज ने इसके लिए अपना दावा पेश किया है। डॉ. दीक्षित के मुताबिक इंदौर में अब तक 914 किडनी ट्रांसप्लांट हो चुकी हैं। स्किन ट्रांसप्लांट में हम देश में दूसरे नंबर पर हैं। कॉर्निया ट्रांसप्लांट के परिणाम भी देश में सबसे बेहतर हैं। यहां 13 ग्रीन कॉरिडोर बन चुका है। डीएमई डॉ. जीएस पटेल ने भी स्वास्थ्य मंत्रालय को एमजीएम मेडिकल कॉलेज का नाम भेजा है।