नई दिल्ली। 2017 से अब नहीं पेश होगा रेल बजट। 92 सालों से चली आ रही परं
परा अब खत्म होने जा रही है। 1924 से लेकर अब तक आम बजट से अलग पेश हो रहे रेल बजट को आम बजट में ही मिला दिया जाएगा। आज कैबिनेट की बैठक में इसपर आधिकारिक मुहर भी लगने की उम्मीद है।
रेलवे के आधिकारिक सूत्रों की मानें तो बुधवार को होने वाली कैबिनेट में रेल बजट को आम बजट में मिलाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी जाएगी। अगर ऐसा हुआ तो अलग रेल बजट की परंपरा इतिहास बन कर रह जाएगी और सुरेश प्रभु का नाम आखिरी ऐसे रेलमंत्री के तौर पर इतिहास के पन्रों में दर्ज हो जाएंगा, जिन्हें आखिरी बार रेल बजट संसद में पेश करने का मौका मिला।
आगामी वित्त वर्ष के लिए साल 2017 में अब सिर्फ और सिर्फ आम बजट ही संसद में पेश किया जाएगा। रेल मंत्रालय का वित्तीय लेखा-जोखा भी आम बजट का उसी तरह से हिस्सा होगा, जैसे दूसरे मंत्रालय के लिए होता है। वैसे तो आम बजट में रेल बजट के मर्जर के सैद्धांतिक सहमति हो गई है और इसके लिए नीति आयोग के प्रस्ताव पर रेलमंत्री ने अपनी सहमति पहले ही जता दी है। बुधवार को कैबिनेट की बैठक में इस प्रस्ताव पर मुहर लग जाएगी।
रेलवे के आला अफसरों के मुताबिक वित्त मंत्रालय ही अब रेल मंत्रालय का बजट तय करेगा लेकिन अभी भी दोनो मंत्रालयों के अधिकारों का बटंवारा बाकी है और इसके लिए क्या प्रक्रिया होगी इसको भी तय किया जाना बाकी है। वित्त मंत्रालय और रेल मंत्रालय के बीच जिन विषयों पर अभी अतिम फैसला होना बाकी है उनमें पेंशन की देनदारी, डिवीडेंड, रेलवे को वित्त मंत्रालय से मिलने वाले ग्रॉस बजटरी सपोर्ट और किराया तय करने का अधिकार जैसे मसले हैं।
रेल मंत्रालय किराया और माल भाड़ा तय करने के अधिकार को अपने पास रखना चाह रहा है। इसके अलावा रेल मंत्रालय बाजार से पैसा उठाने के अधिकार को भी वित्त मंत्रालय को नहीं देना चाहता। रेल मंत्रालय की सबसे बड़ी चिंता है कि सातवें वेतन आयोग का बोझ और माल भाड़े से हो मिल रहे राजस्व में आ रही तेज कमी। इसके चलते पहले से ही आर्थिक परेशानियों का दबाव झेल रहे रेल मंत्रालय के लिए डिविडेंट देने से लेकर ऑपरेशनल लागत निकाल पाना मुश्किल हो रहा है। ऐसे में आम बजट में विलय के साथ रेल मंत्रालय के अधिकारो में और कटौती हुई तो उनकी दिक्कतें बढ़ सकती हैं।