ज्योतिष में भविष्य कथन करने के लिए, अच्छे दिन के लिए, शादी के लिए, नौकरी के लिए, आने वाली संतान के लिए, सबसे जादा दो ग्रहोंका ही अभ्यास करना पड़ता है । वो है गुरु बृहस्पति, और शनि । क्यूंकि गुरु प्रत्येक राशि में एक साल से जद वक़्त विराजमान होते है । तो शनि ढाई साल तक एक ही राशि में अपनी धीमी चाल चलते रहते है ।
कुंडली से जाने कब लगेगी नौकरी
इसलिए जातक या इंसान पर सब से जादा असर करने वाले यही दो ग्रह होते है । जब जब गोचर गुरु की सप्तमेश या सप्तम स्थान पर गुरु की शुभ दृष्टी पड़ती है । तब तब उस जातक को शादी या विवाह के योग बनते है । अगर शादी नहीं भी होती है तो, लड़के या लड़की केliye रिश्ते आना शुरू हो जाता है ।
जब गुरु की शुभ दृष्टी कर्म स्थान पर पड़ती है तब तब इंसान नए नौकरी या बिज़नेस करने के योग बनते है । जब गुरु की दृष्टी क्रम स्थान पर पड़ती है, या गुरु कर्म स्थान में विराजमान होते है तो समजो नौकरी में प्रमोशन पक्का हो गया । गुरु की शुभ दृष्टी पंचम भाव पर पड़ती है तो इंसान को संतति सुख मिलने का योग निर्माण हो जाता है ।
ऐसे शुभ ग्रह गुरु की दृष्टी चौथ स्थान पे पढ़ने या चौथे स्थान में विराजमान होने के बाद वाहन, घर का सुख दिलाता है । जब गुरु की शुभ दृष्टी धन स्थान पर पड़ती है तो घर में मंगल शहनाई बजती है । घर में नै दुलहन या संतान के रूप में नए महमान घर मे आते है । धन आने के मार्गो में बढ़ोतरी हो जाती है । गुरु की गोचर स्थिति में गुरु व्यय स्थान में विराजमान होने पर जातक इंसान को दुःख झेलने पड़ते है । लेकिन धर्म और धार्मिक क्रियाओं में मन लगता है । इंसान वैरागी बन जाता है ।
इतने बड़े और शुभ ग्रह होने के बावजूद जिस जातक के कुंडली में जिस स्थान में गुरु होता है, उस स्थान का फल अशुभ मिलता है । यह तो सत्य कहावत है, दीपक चाहे कितनी भी रौशनी फैलाए रहेगा तो उसके निचे अँधेरा ही ।