अन्नदाताओं को मनाने के लिए मोदी ये करेंगे…

किसान फसल के दाम चढ़ने पर अपनी मर्जी के मुताबिक सरकार या बाजार में किसी को भी बेच सकेंगे, दूसरी तरफ उन्हें उन बिचौलियों से भी निजात मिल सकेगी जो उनकी मजबूरी का फायदा उठाकर सीजन में कम कीमत पर फसल की खरीदी करते हैं और बाद में फसल का दाम चढ़ने पर उन्हें बेचकर मोटा मुनाफा कमाते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने लोकसभा क्षेत्र वाराणसी में जनवरी माह के अंत या फरवरी की शुरुआत में एक बड़ी किसान रैली में भाग ले सकते हैं। इस रैली में वे किसानों को साल में कभी भी अपनी फसल सरकार के क्रय केंद्रो पर बेचने की घोषणा कर सकते हैं। अगर यह घोषणा हो जाती है तो इससे किसान तय अवधि के बीच अपनी फसल को सरकार या अन्य खरीदारों को बेचने के लिए बाध्य नहीं होंगे।

जानकारी के मुताबिक केंद्र सरकार राज्य सरकारों को पूरे वर्ष खरीदी करने के लिए तैयार करने की एक योजना बना रही है। किसी कारण से कोई राज्य सरकार फसल की खरीदी करने में असमर्थ रहती है तो केंद्र इसमें उसकी मदद करेगा। लगातार फसल खरीदी के कारण राज्य सरकारों के द्वारा अधिक मूल्य चुकाने में असमर्थ होने पर केंद्र उनकी आर्थिक मदद भी करेगा, इस रणनीति पर विचार हो रहा है।

भारतीय जनता पार्टी के किसान मोर्चे के राष्ट्रीय अध्यक्ष वीरेंद्र सिंह मस्त ने अमर उजाला को बताया कि सरकार से इस विषय पर उन्हें लगभग पूरी सहमती मिल चुकी है। इस योजना की घोषणा खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी में राष्ट्रीय किसान मोर्चे की सालाना बैठक के दौरान कर सकते हैं। प्रधानमंत्री के कार्यक्रमों को देखते हुए समय मिलने के बाद मोर्चे की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक की तारीख तय कर दी जाएगी।

वीरेंद्र सिंह मस्त के मुताबिक अभी तक किसानों को सरकार की इच्छा से एक निश्चित समयावधि में फसल बेचने को बाध्य होना पड़ता है। इससे उनके कई काम प्रभावित होते हैं। अपनी ही फसल बेचने के लिए उन्हें मंडियों में दिन-रात पड़े रहना पड़ता है। अक्सर ऐसी स्थिति आती है कि फसल खरीदी के बाद सरकार के पास उसे रखने की भी जगह नहीं होती। लेकिन अगर यह योजना जमीन पर उतर जाती है, जिसकी पूरी सम्भावना है, तो किसान अपनी जरूरत के हिसाब से जब चाहे फसल बेच सकेंगे और सरकार को भी इसके भंडारण की परेशानी नहीं होगी।

विपक्ष ने किसानों के मुद्दे पर केंद्र सरकार को घेरने की पूरी रणनीति बना रखी है। नवंबर माह के अंत और फरवरी-मार्च में भी किसान संगठनों और कम्युनिष्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया ने बड़े किसान आन्दोलन की रणनीति बना रखी है। विपक्षी दलों की रणनीति के बीच भाजपा की यह कोशिश उसकी काट के तौर पर भी देखा जा सकता है। भाजपा का मानना है कि सरकार की यह योजना कर्जमाफी से भी ज्यादा कारगर साबित हो सकती है।

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