दादा जी ने देश की आन-बान-शान, देश के गुमान तिरंगे को बहुत ही सहेज कर सीया था। आजादी के लिए लड़ी गई 100 बरस की जंग में कुर्बान हुए देश के लिए मर-मिटने वाले हर वीर सपूत के बलिदान को तिरंगे में तुरप दिया था।
तिरंगे के तीनों रंग केसरिया, सफेद और हरे को मिलाकर, उसके आकार व बीच में बने अशोक चक्र.. हर चीज को दादा जी ने बड़े करीने के साथ कागज पर बने सबसे पहले तिरंगे से मिलान करते हुए सीकर सजा दिया था। मानों मां भारती स्वयं उनके पास खड़े होकर उनकी भावनाओं को रंग, रूप आकार दे रही हों। मेरे दादा जी का सौभाग्य था कि उन्हें स्वाधीनता दिवस के अवसर पर फहराया जाने वाला पहला तिरंगा तैयार करने का अवसर मिला। उनकी रग-रग में आजादी व देशभक्ति की भावना हिलोरे लेती थी।