कश्मीर मुद्दे पर चर्चा के लिए चीन की मांग पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने शुक्रवार को आपात बैठक बुलाई है। यह बैठक बंद कमरे में होगी। सुरक्षा परिषद के मौजूदा अध्यक्ष पोलैंड ने इस मुद्दे को चर्चा के लिए शुक्रवार को सूचीबद्ध कर दिया।

चीन ने पैंतरा बदलते हुए पाकिस्तान की मांग का समर्थन करते हुए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आपात बैठक बुलाने की मांग की थी। इससे पहले पाकिस्तान ने कश्मीर मसले पर खुले में वार्ता के लिए सुरक्षा परिषद की बैठक बुलाने की मांग थी, जिसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने ठुकरा दिया था।
बैठक की जानकारी देते हुए राजनयिकों ने कहा कि चीन ने सुरक्षा परिषद से इस मुद्दे पर चर्चा के लिए ‘बंद कमरे’ में बैठक बुलाने को कहा था। कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद पाकिस्तान अपने विश्वसनीय सहयोगी चीन का समर्थन प्राप्त करने की लगातार कोशिश कर रहा था।
एक राजनयिक ने बताया कि बीजिंग के करीबी सहयोगी पाकिस्तान ने कश्मीर मसले पर खुले में वार्ता करने के लिए अगस्त महीने में सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष पोलैंड को पत्र लिखा था।
राजनयिक ने कहा, ‘चीन ने सुरक्षा परिषद की कार्यसूची में शामिल ‘भारत-पाकिस्तान सवाल’ पर चर्चा की मांग की थी। यह मांग पाकिस्तान की ओर से सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष को लिखे पत्र के संदर्भ में की गई थी।’
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष जोआना रोनेका के हवाले से कहा था कि सुरक्षा परिषद जम्मू-कश्मीर मसले पर चर्चा करेगी और उसके लिए 16 अगस्त को बैठक हो सकती है। बैठक के समय के बारे में पूछे जाने पर रोनेका ने कहा था कि संभवत: यह बैठक शुक्रवार को हो, क्योंकि गुरुवार को सुरक्षा परिषद की बैठक नहीं होती।
भारत ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को स्पष्ट रूप से यह बता दिया कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाना उसका नितांत निजी आंतरिक मामला है और उसने पाकिस्तान से भी इसे स्वीकार करने की सलाह दी है। इस बीच संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुतेरस ने भारत और पाकिस्तान से संयम बनाए रखने तथा शिमला समझौते के तहत विवाद को सुलझाने पर जोर दिया।
भारत ने चीन को बताया आंतरिक मामला
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सोमवार को बीजिंग में चीन के विदेश मंत्री वांग यी के साथ हुई द्विपक्षीय मुलाकात में स्पष्ट किया था कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म करने का फैसला भारत का आंतरिक मामला है। उन्होंने कहा था कि यह बदलाव बेहतर प्रशासन और क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए है एवं फैसले का असर भारत की सीमाओं और चीन के साथ लगती वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर नहीं पड़ेगा।
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