एक युवा ब्रह्मचारी ने दुनिया के कई देशों में जाकर अनेक कलाएं सीखीं। एक देश में उसने धनुष-बाण बनाने और चलाने की कला सीखी और कुछ दिनों के बाद वह दूसरे देश की यात्रा पर गया। वहां उसने जहाज बनाने की कला सीखी क्योंकि वहां जहाज बनाए जाते थे। फिर वह किसी तीसरे देश में गया और कई ऐसे लोगों के सम्पर्क में आया, जो घर बनाने का काम करते थे।
इस प्रकार वह 16 देशों में गया और कई कलाओं को अर्जित करके लौटा। अपने घर वापिस आकर उसने अहंकार में भरकर लोगों से पूछा कि इस सम्पूर्ण पृथ्वी पर मुझ जैसा कोई गुणी व्यक्ति है?
लोग हैरत से उसे देखते। धीरे-धीरे यह बात भगवान बुद्ध तक भी पहुंची। बुद्ध उसे जानते थे। वह उसकी प्रतिभा से भी परिचित थे। वह इस बात से चितिंत हो गए कि कहीं उसका अभिमान उसका नाश न कर दे।
एक दिन वह एक भिखारी का रूप धरकर हाथ में भिक्षापात्र लिए उसके सामने गए। ब्रह्मचारी ने बड़े अभिमान से पूछा कि कौन हो तुम?
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