बैंकिंग सेवाओं की लगातार बढ़ती सुलभता की वजह से अधिकांश ग्राहक एक से अधिक बचत खाते रखने लगे हैं। हालांकि ऐसे अधिकांश खाते पिछली नौकरियों के होते हैं, जबकि कुछ अन्य खाते इसलिए खोले जाते हैं, ताकि बेहतर बैंकिंग सुविधाएं मिल सकें।
समय बीतने के साथ इनमें से अधिकांश खातों से लेन-देन न हो पाने के कारण वे निष्क्रिय हो जाते हैं, जिसकी वजह से खाताधारक को नुकसान उठाना पड़ सकता है। सवाल उठता है कि नुकसान क्यों हो सकता है? इसके कुछ कारण हैं:
औसत बैलेंस की जरूरत
बढ़ते जाते हैं शुल्क
यह बचत खाते में निष्क्रिय पड़ी राशि के ब्याज से अधिक भी हो सकता है। जैसे ही डेबिट कार्ड के सालाना शुल्क की कटौती के चलते बैलेंस औसत सीमा से कम हो जाता है, खाते पर एमएबी नॉनमेंटेनेंस चार्ज लगना शुरू हो जाएगा। डेबिट कार्ड शुल्क के अलावा बैंक 30 रुपए प्रति तिमाही तक का वैल्यू एडेड एसएमएस अलर्ट शुल्क भी ले सकते हैं।
बचत खाते में निष्क्रिय पड़ी रकम पर ब्याज निवेश के अन्य साधनों के मुकाबले कम मिलता है। अधिकांश बैंक बचत खातों पर सालाना 3.5-4 प्रतिशत ब्याज दर देते हैं। कम ही बैंक ऐसे हैं जो जरूरी बैलेंस बनाए रखने पर सालाना 6.5 प्रतिशत ब्याज देते हैं। दूसरी तरफ, फिक्स्ड जमा की गई राशि पर सालाना 9 प्रतिशत तक का ब्याज मिल सकता है। म्युचुअल फंडों में पैसा लगाने पर तो 5 से लेकर 15 प्रतिशत तक सालाना रिटर्न मिल सकता है। हालांकि इसमें जोखिम भी होता है।
यदि बैंक खातों में ग्राहक लगातार 12 महीनों तक लेनदेन न करे तो उसे इनएक्टिव खाता मान लिया जाता है। यदि ऐसे खातों में लगातार अन्य 12 महीनों तक लेनदेन न हो, तो उन्हें डॉर्मेंट/इनऑपरेटिव खाते के रूप में पुनर्वर्गीकृत कर दिया जाता है। हालांकि, इनएक्टिव खातों से लेनदेन नहीं रोका जाता, लेकिन डॉर्मेंट खातों के रिएक्टिवेशन तक खाताधारक उनसे नेट बैंकिंग, एटीएम ट्रांजैक्शन, फोन बैंकिंग और थर्ड-पार्टी कैश ट्रांजैक्शन नहीं कर सकते।