अंबानी के रिलायंस ग्रुप के बचाव में राफेल बनाने वाली कंपनी, कहा- सौदे में कोई घोटाला नहीं

 राफेल विमान सौदे पर देश में मचे राजनीतिक घमासान के बीच दसौ कंपनी के सीईओ ने कहा कि यह दुखद है कि राफेल सौदे पर राजनीति भारी पड़ रही। जबकि 36 विमानों के सौदे में कोई घोटाला नहीं हुआ। वह उच्च क्षमता का विमान है। यह भारत की रक्षा प्रणाली की मजबूत कड़ी साबित होगा।

उन्होंने कहा रिलायंस ग्रुप का भी बचाव किया। साथ ही अब दसौ भारतीय वायुसेना के लिए 110 विमान बनाने की होड़ में भी शामिल हैं। बेंगलुरु में चल रहे एयरो इंडिया-2019 एयर शो में बुधवार को राफेल बनाने वाली कंपनी दसौ के सीईओ एरिक ट्रैपियर ने कहा कि हम 110 विमान देने की दौड़ में शामिल हैं। चूंकि हम मानते हैं कि राफेल सर्वश्रेष्ठ विमान हैं और भारत में हमारा विश्वास गहरा है।

दरअसल केंद्र सरकार ने पिछले साल छह अप्रैल को भारतीय वायुसेना के लिए युद्धक विमानों की पहली बड़ी खेप के सौदे के लिए सूचना मांगने के आवेदन (आरएफआई) या प्रारंभिक टेंडर जारी किए थे। उल्लेखनीय है कि छह साल पहले पूर्ववर्ती सरकार ने 126 मीडियम मल्टी रोल काम्बैट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) खरीदने की प्रक्रिया को बीच में ही रोक दिया था।

उन्होंने कहा कि भारत को हमें 36 विमान देने हैं और इसकी आपूर्ति करेंगे। यह साफ-सुथरी डील है। पहला राफेल विमान सितंबर में भारत पहुंचेगा। इसके बाद हर महीने एक विमान भारत को दिया जाएगा। इस लिहाज से 36 महीने में 36 विमानों की आपूर्ति होगी। अगर भारत सरकार को और राफेल विमान चाहिए तो हमें उनकी आपूर्ति करने में बेहद खुशी होगी। राफेल युद्धक विमान के देश में बनने के सवाल पर ट्रैपियर ने कहा कि भारत में विमान बनाने के लिए कम से कम 100 विमानों का ऑर्डर होना चाहिए।

रिलायंस के पक्ष में ट्रैपियर की दलीलें

-यह पूछे जाने पर कि दसौ ने अपने साझीदार के रूप में रिलायंस ग्रुप को क्यों चुना जबकि उसे इस क्षेत्र में अनुभव नहीं है, ट्रैपियर ने तपाक से कहा, “हां। लेकिन हमें अनुभव है। हम इस जानकारी, प्रक्रिया और अनुभव को भारतीय टीम को दे रहे हैं।”

उन्होंने कहा, “भारतीय टीम को एक नई कंपनी दसौ रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड (डीएआरएल) ने नियुक्त किया है। वह भारत और कंपनी के लिए अच्छे हैं, तो फिर परेशानी किस बात की है?”

-रिलायंस की आर्थिक परेशानियों के बावजूद दसौ के उसके साथ काम करने के बारे में पूछने पर ट्रैपियर ने कहा कि यह रिलायंस का अंदरूनी वित्तीय मामला है। उनकी कंपनी में दसौ का निवेश सुरक्षित है और बेहतर निगरानी में है। उन्होंने रिलायंस को चुना क्योंकि वह कंपनी में औद्योगिक प्रक्रिया अपनी निगरानी में चाहते थे। मैं भारत में अपने धन का निवेश करना चाहता था और हमें यहां एक साझीदार मिल गया।

राजग शासन में यूपीए शासन से ज्यादा महंगे विमान खरीदने के राहुल गांधी के आरोप के बारे में पूछने पर ट्रैपियर ने कहा कि इस सौदे में दोनों देशों ने वास्तविक कीमत से नौ फीसदी की कमी की है। कैग की रिपोर्ट में भी बताया गया है कि यूपीए शासन की कीमतों के मुकाबले राजग शासन की कीमतें 2.8 फीसदी कम हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सौदे को पारदर्शी बताया है। इसलिए वह इन दोनों फैसलों से बेहद खुश हैं।

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