बहुत से लोग ऐसे हैं, जिन्हें घर को सुंदर तस्वीरों, पेंटिंग से सजाने का शौक होता है. अगर आपको भी ऐसा ही शौक है, तो आप मधुबनी की पेंटिंग को एक बार जरूर ट्राई कर सकते हैं. मधुबनी की चित्रकारी भारत की लोककलाओं में से एक है. आइए, जानते हैं भारत की इस विरासत के बारे में.
राधा-कृष्ण की लीलाओं को कला में दिखाना
मधुबनी लोककला बिहार के मधुबनी स्थान से सम्बधित है. मधुबन का अर्थ है ‘शहद का वन’ और यह स्थान राधा कृष्ण की मधुर लीलाओं के लिए मशहूर है. मधुबनी की लोक कला में भी कृष्ण की लीलाओं को चित्रित किया गया है. यह कला आम और केलों के झुरमुट में कच्ची झोपड़ियों से घिरे हरे भरे तालाब वाले इस ग्राम में पुश्तों पुरानी है और मधुबन के आसपास पूरे मिथिला इलाके में फैली हुई है. विद्यापति की मैथिली कविताओं के रचनास्थल इस इलाके में आज मुज़फ्फपुर, मधुबनी, दरभंगा और सहरसा जिले आते हैं.
ऐसे बनाई जाती है कलाकृति
मधुबनी की कलाकृतियों तैयार करने के लिये हाथ से बने कागज को गोबर से लीप कर उसके ऊपर वनस्पति रंगों से पौराणिक गाथाओं को चित्रों के रूप में उतारा जाता है. कलाकार अपने चित्रों के लिये रंग स्वयं तैयार करते हैं और बांस की तीलियों में रूई लपेट कर अनेक आकारों की तूलिकाओं को भी खुद तैयार करते हैं.
प्राकृतिक रंगों की छाप
इन कलाकृतियों में गुलाबी, पीला, नीला, सिदूरा (लाल) और सुगापाखी (हरा) रंगों का इस्तेमाल होता है. काला रंग ज्वार को जला कर प्राप्त किया जाता है या फिर दिये की कालिख को गोबर के साथ मिला कर तैयार किया जाता है, पीला रंग हल्दी और चूने को बरगद की पत्तियों के दूध में मिला कर तैयार किया जाता है. पलाश या टेसू के फूल से नारंगी, कुसुंभ के फूलों से लाल और बेल की पत्तियों से हरा रंग बनाया जाता है. रंगों को स्थायी और चमकदार बनाने के लिये उन्हें बकरी के दूध में घोला जाता है.