आप सभी को बता दें कि इस साल रमजान 5 मई को है. ऐसे में आज हम आपको इस्लाम के संस्थापक पैगंबर हज़रत साहब के बारे में एक ऐसे राज को बताने जा रहे हैं जो बहुत कम लोग जानते हैं. उनके मौत के पीछे भी एक कहानी है तो आइए जानते हैं उसे.
कहानी – 49 साल की उम्र मे पिगअंबर साहब को अपने दोस्त और इस्लाम के पहले खलीफा अबूबकर की 6 साल की बेटी साहिबा आयेशा से मुहब्बत हो गयी. हुजूर के सम्मान मे खलीफा ने अपनी बेटी का निकाह हुजूर से कर दिया पर बच्ची साहिबा अपने अब्बू के घर ही रही. 9 साल की उम्र मे जब चाँद सी खूबसूरत साहिबा पिगअंबर साहब के घर आई तो अपने 53 साल के बूढ़े खाबिंद को देख उनसे बातचीत करना बंद कर दिया, और उनके साथ सोने को राजी नहीं हुई. साहिबा के विरह मे खोये हुजूर की हालत किसी मजनू के मानिंद हो गयी थी. घर से अहले सुबह कहीं निकल जाते, न कुछ खाते न पीते, यूं ही इधर-उधर खोये-खोये से भटकते रहते. जब रात को चाँद सी साहिबा का दीदार करते, तो उन्हें देख कर कुछ ना कुछ थोडा सा खा लेते थे. इसी तरह पूरे 30 दिन बीत गए, हुजूर की बाँकी 7 बीबियाँ साहिबा आयेशा पर लगातार दबाब बनाती रही. आखिरकार हुजूर के सच्चे प्रेम की जीत हुई और साहिबा आयेशा हुजूर के साथ “जिना” को राजी हुई.
कहते हैं — ये वही 30 दिन हैं जब कुरान की शुरुआती कई आयतें नजील हुई. कुरान सूरा 2 के आयात 183 और 184 मे हर मोमिन को इस पाक महीने मे हुजूर की तरह ही अहले सुबह से लेकर शाम सूरज डूबने तक कुछ भी खाने-पीने की मनाही है. अल्लाह रोजेदार और इबादत करने वाले की दुआ कूबुल करता है और इस पवित्र महीने में गुनाहों से बख्शीश मिलती है. इस पाक प्रेम कहानी का एक और काला चेहरा है जिसे सुन्नी हमेशा छिपाया करते हैं. वह साहिबा आयेशा ही थी जिसने किसी धीमी जहर का हुजूर पर प्रयोग किया था. शिया-अहमदीया फिरके साहिबा को “हुजूर की कातिल” ठहराती है.