होते होते हो ही गया। पार्टी से नाराज शिवपाल सिंह यादव ने अपना अलग दल बना लिया और अगले साल उत्तर प्रदेश की सभी लोकसभा सीटों पर चुनाव लडऩे की घोषणा भी कर दी। दल का नाम भी रोचक है- समाजवादी सेक्युलर मोर्चा। जाहिर है यह सवाल बहुतों के मन में उठा कि समाजवादी क्या सेक्युलर नहीं होते? या फिर जिस समाजवादी पार्टी के शिवपाल प्रदेश अध्यक्ष रहे और जिसके टिकट पर विधायक और मंत्री तक बने, क्या वह धर्मनिरपेक्ष नहीं थी। सपा की तो पूरी राजनीति ही धर्मनिरपेक्षता बनाम सांप्रदायिकता की रही है।
बहरहाल, समाजवादी पार्टी के कुनबे में जो कलह 2016 के उत्तरार्ध में शुरू हुई थी, लगभग दो वर्ष में वह अपने औपचारिक निष्कर्ष तक पहुंच गई। इन दो वर्षो में समाजवादी पार्टी परिवार के भीतर जो कुछ हुआ, उसकी पृष्ठभूमि में शिवपाल सिंह यादव का अलग दल बना लेना उतना कौतूहल नहीं पैदा कर पाया जितना यह सवाल कि अब आगे उनका साथ पार्टी के कितने विधायक देने वाले हैं। समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के अनुज और पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल सिंह यादव अच्छे दिनों में अपनी बिरादरी के अनेक विधायकों की पसंद रहे हैं। कुछ और असंतुष्ट भी गाहे बगाहे शिवपाल के साथ देखे जाते रहे हैं। हालांकि साथ दिखने और साथ जाने में अंतर होता है। उधर मुलायम सिंह हैं जो जाने कैसे और क्यों अब भी परिवार और पार्टी में सब ठीक बता रहे हैं।
यह भी संयोग ही है कि 29 अगस्त को जिस दिन शिवपाल यादव ने अपना मोर्चा बनाने की घोषणा की, उनके पुराने साथी अमर सिंह भी लखनऊ में ही रहकर मुलायम सिंह यादव के साथ अखिलेश यादव और आजम खां को ललकार रहे थे। अमर सिंह ने कहा तो बहुत कुछ लेकिन उन्हें सिर्फ सुना ही गया, गंभीरता से नहीं लिया गया। उन्होंने समाजवादी पार्टी को नमाजवादी कहा तो तत्काल सोशल मीडिया पर उनकी वह फोटो वायरल हो गई जिसमें कभी वह भी मुलायम और अखिलेश यादव के साथ टोपी पहने खड़े थे। वह आजम खां के शहर रामपुर भी गए लेकिन, वहां भी उनकी लाठी पानी पर ही चल सकी। हो सकता है किन्हीं बाहरी शक्तियों के समर्थन से उनकी सपा विरोधी मुहिम आगे कोई और बड़ा रूप ले, फिलहाल तो वह एक रोचक प्रहसन से आगे न पहुंच सकी।