राज्य सरकार ने 3.24 एकड़ जमीन का पट्टा शर्तों के साथ ट्रस्ट को दिया था। हालांकि, शर्तों के उल्लंघन का हवाला देते हुए सरकार ने बाद में इसे रद्द कर दिया था।
समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान को शीर्ष अदालत से बड़ा झटका लगा है। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने उत्तर प्रदेश के मौलाना मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय की जमीन का पट्टा रद्द करने के हाईकोर्ट के एक फैसले को चुनौती देने वाली याचिका सोमवार को खारिज कर दी। साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया कि वो यह सुनिश्चित करें कि जौहर यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले सभी छात्रों का दाखिला दूसरे शैक्षणिक संस्थानों में हो सके।
सुप्रीम कोर्ट ने यूनिवर्सिटी पर यूपी सरकार के अधिग्रहण के फैसले में दखल देने से इनकार कर दिया और इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर मुहर लगाई है। सुप्रीम कोर्ट ने मौलाना मोहम्मद अली जौहर ट्रस्ट की याचिका को खारिज कर दिया है।
क्या है मामला?
दरअसल, राज्य सरकार ने 3.24 एकड़ जमीन का पट्टा शर्तों के साथ ट्रस्ट को दिया था। हालांकि, शर्तों के उल्लंघन का हवाला देते हुए सरकार ने इस पट्टे को रद्द कर दिया था। उनका कहना था कि यह जमीन शोध संस्थान के लिए आवंटित की गई थी, लेकिन यहां स्कूल चलाया जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने कही ये बात
सुनवाई के दौरान सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘रिकॉर्ड में स्वीकार किए गए तथ्य यह हैं कि भूमि का आवंट मंत्री के पद का स्पष्ट दुरुपयोग था। जब भूमि का आवंटन हुआ था, उस समय आजम खान शहरी विकास मंत्रालय के कैबिनेट मंत्री और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री थे। हमें हाईकोर्ट के फैसले में किसी तरह की अनियमितता नहीं दिखती है।’
शीर्ष अदालत ने ट्रस्ट की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की दलीलों पर गौर किया। साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार से यह सुनिश्चित करने को कहा कि किसी भी बच्चे को उपयुक्त शैक्षणिक संस्थान में दाखिला देने से मना नहीं किया जाए।
सिब्बल ने दिया तर्क
सिब्बल ने तर्क दिया कि पिछले साल बिना कोई कारण बताए लीज को रद्द कर दिया गया था। उन्होंने कहा, ‘अगर उन्होंने मुझे नोटिस और कारण बताए होते, तो मैं इसका जवाब दे सकता था। क्योंकि, अंततः मामला मंत्रिमंडल के पास गया। मुख्यमंत्री ने भूमि आवंटन का फैसला लिया। यह सिर्फ इतना नहीं है कि मैंने फैसला लिया।’
हाईकोर्ट ने 18 मार्च को भूमि का पट्टा रद्द करने के राज्य सरकार के आदेश को चुनौती देने वाली ट्रस्ट की याचिका खारिज कर दी थी। ट्रस्ट की कार्यकारी समिति ने तब बताया था कि सुनवाई का कोई मौका नहीं दिया गया और पट्टे को रद्द कर दिया गया था।