देश में जनसंख्या नियंत्रण कानून की मांग करने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है. याचिका में कहा गया है कि बढ़ती आबादी के चलते लोगों को बुनियादी सुविधाएं मुहैया नहीं हो पा रही हैं. संविधान में जनसंख्या नियंत्रण के लिए कानून बनाने का अधिकार सरकार को दिया गया है, इसके बावजूद अब तक सरकारें इससे बचती रही हैं.

याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की दलील है कि भारत में दुनिया की कुल कृषि भूमि का 2 फ़ीसदी और पेयजल का चार फ़ीसदी है जबकि आबादी पूरी दुनिया की लगभग 20 फ़ीसदी है. ज़्यादा आबादी के चलते लोगों को आहार, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित होना पड़ रहा है. यह सीधे-सीधे सम्मान के साथ जीवन जीने के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. आबादी पर नियंत्रण पाने से लोगों के कल्याण के लिए बनी तमाम सरकारी योजनाओं को लागू करना आसान हो जाएगा. इसके बावजूद सरकारें जनसंख्या नियंत्रण पर कोई कानून नहीं बनाती है.
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “आपको अपनी याचिका हाईकोर्ट में रखनी चाहिए. याचिकाकर्ता ने जवाब दिया, “मैंने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका डाली थी. हाईकोर्ट ने यह कहकर उसे खारिज कर दिया कि कानून बनाने पर विचार करना सरकार का काम है. कोर्ट इसका आदेश नहीं देगा.” इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर याचिका पर जवाब देने को कह दिया.
याचिकाकर्ता ने कोर्ट को यह भी बताया कि 2002 में पूर्व CJI एम एम वेंकटचलैया के नेतृत्व में बने संविधान समीक्षा आयोग ने भी संविधान के नीति निदेशक सिद्धांतों में अनुच्छेद 47A जोड़ने की सिफारिश की थी. इसमें आबादी पर नियंत्रण की कोशिश को सरकार का दायित्व बताया जाना था. उसके बाद से कई संविधान संशोधन हुए, लेकिन इस सुझाव को जगह नहीं मिली.
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