सुनील गावस्कर टेस्ट क्रिकेट में 10 हजार रन पूरे करने वाले पहले बल्लेबाज हैं. अगर ये कहा जाए कि वो भारतीय क्रिकेट के सर्वकालिक महान बल्लेबाज हैं, तो इसमें शायद ही किसी को शक होगा. इस दिग्गज बल्लेबाज ने 16 साल अंतरराष्ट्रीय क्रिेकेट खेलने के बाद 1987 में संन्यास लिया था. इतने बड़े कद का खिलाड़ी होने के बाद भी गावस्कर ने कभी भी टीम इंडिया का कोच बनने में रूचि नहीं दिखाई. जबकि 90 के दशक में बतौर कोच कई दिग्गजों ने भारतीय टीम की जिम्मेदारी संभाली. इनमें संदीप पाटिल, अंशुमान गायकवाड़, कपिल देव का नाम शामिल है. गावस्कर ने क्यों इस जिम्मेदारी को संभालने में रूचि नहीं दिखाई. उन्होंने हाल ही में इसका खुलासा किया.
गावस्कर ने ‘द एनालिस्ट’ नाम के एक यूट्यूब चैनल से बातचीत में कहा मैं खुद को कोच के रूप में फिट नहीं पाता हूं. क्योंकि कोच या सेलेक्टर बनने के लिए आपको गेंद-दर-गेंद देखनी पड़ती है. मेरे अंदर इतना संयम नहीं है. क्योंकि मैं टुकड़ों में मैच देखता हूं. उन्होंने कहा कि जब मैं खेल रहा था और आउट होने के बाद पवेलियन लौटता था. फिर भी लगातार मैच नहीं देखता था. कुछ देर मैच देखने के बाद मैं चेंज रूम में चला जाता था और या तो किताब पढ़ता था या चिठ्ठियों का जवाब देता था. मैं कभी भी गुंडप्पा विश्वनाथ या मेरे अंकल माधव मंत्री जैसा गेंद-दर-गेंद मैच देखने वाला शख्स नहीं रहा.
‘सचिन, गांगुली जैसे दिग्गज अक्सर बात करते थे’
गावस्कर कोचिंग से दूर रहे, इसका मतलब ये नहीं है कि वो किसी भी क्षमता में अपनी सलाह या राय देने के लिए उपलब्ध नहीं थे. वो भले ही मौजूदा दौर की टीम इंडिया के खिलाड़ियों को सलाह देते नहीं नजर आते हैं. लेकिन इससे पहले की भारतीय टीम, जब सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली, राहुल द्रविड़ इसका हिस्सा थे. तब वो मुश्किल वक्त में अक्सर गावस्कर से सलाह लेते थे. सचिन और द्रविड़ तो कई बार खुलकर इसे बता भी चुके हैं.
इसे लेकर गावस्कर ने कहा कि हां, ये बात सही है कि पुराने टीम इंडिया के खिलाड़ी मेरे पास आते थे. खासतौर पर सचिन, द्रविड़, गांगुली, लक्ष्ण और सहवाग जैसे खिलाड़ियों ने कई बार मुझसे बात की. मुझे उनसे खेल के बारे में बात करना काफी अच्छा लगता था. उनके खेल को लेकर मेरी जो भी राय होती थी, मैं उन्हें बताता था. तो ये सही है कि शायद उन खिलाड़ियों को मेरी सलाह से कुछ फायदा हुआ हो. लेकिन पूरी तरह मैं कोचिंग का काम नहीं कर सकता.