‘सीआरपीएफ बंकर पर लिखा फोन नंबर मिलाया और बदल गई मेरी जिंदगी’

मेरे लिए सीआरपीएफ एक फोर्स नहीं बल्कि खुदा की ओर से भेजी गई फरिश्ता है। जम्मू-कश्मीर के बारामुला जिला में रफियाबाद के निवासी मंजूर अहमद मीर अपने घर के आंगन में बैठे कहते हैं कि भालू के हमले के बाद पिछले पांच साल से मेरी जिंदगी जहन्नुम बन चुकी थी। ऐसा लगने लगा था कि मुझे ताउम्र दूसरों के सहारे जीना पड़ेगा। लेकिन एक दिन मेरे एक दोस्त ने कहा कि मैं सीआरपीएफ से मदद मांगू। मैंने बाजार में सीआरपीएफ के बंकर पर लिखा फोन नंबर लिया और वाकई में उसके बाद मेरी जिंदगी बदल गई।

बीते छह माह के दौरान दूसरी आंख जो बची थी वह भी बंद होने लगी थी। डॉक्टरों से मिला तो उन्होंने कहा कि सर्जरी के लिए बाहर जाना पड़ेगा और इलाज में लाखों रुपये खर्च होंगे। कोई मदद नहीं कर रहा था। एक दिन एक दोस्त ने बताया कि सीआरपीएफ से मदद मांगो। उसने ही सीआरपीएफ के एक बंकर से नंबर नोट किया और फिर मैंने डरते-डरते उस नंबर पर फोन किया। जिसके बाद उन्होंने मेरा पूरा ब्योरा लिया। सीआरपीएफ वाले मेरे घर तक पहुंच गए। उन्होंने न सिर्फ मेरी आंख बचाने में मदद की, बल्कि अब मुझे रोजगार दिलाने का भी प्रयास कर रहे हैं।

एक साल में ढाई लाख से ज्यादा लोग मांग चुके मदद
मददगार योजना के लिए तैनात सीआरपीएफ टीम का नेतृत्व कर रहे असिस्टेंट कमांडेंट गुल जुनैद खान ने कहा कि बीते एक साल के दौरान करीब ढाई लाख से ज्यादा लोग सीआरपीएफ से संपर्क कर चुके हैं। मंजूर मीर ने भी हमसे फोन पर ही संपर्क किया था। हमने उसके इलाके में तैनात सीआरपीएफ की वाहिनी को सूचित किया। वहां स्थित सीआरपीएफ की 92वीं वाहिनी के कमांडेट दीपक ने तुरंत संज्ञान लिया। उसके इलाज का पूरा खर्च सीआरपीएफ ने ही उठाया है।

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