कुछ लोग बिल्लियों को अपने मन को लुभाने के लिए पालते है, एक नए शोध से पता चला है की बिल्लियों के साथ रहने से शिजोफ्रेनिया बीमारी होने का खतरा रहता है। शोधकर्ताओं ने कहा है कि परजीवी टॉक्सोप्लास्मा गोंडी (टी. गोंडी), जो कि बिल्लियों से मनुष्यों में संक्रमित हो सकता है और इस कारण उनमें शिजोफ्रेनिया विकार उत्पन्न हो सकता है। हफिंग्टन पोस्ट के अनुसार, स्टेनले मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के एडविन टोरे ने बताया, टी. गोंडी दिमाग में पहुंचकर सूक्ष्म अल्सर को जन्म देता है। टोरे ने कहा, हमारे विचार से यह बाद में किशोरावस्था में बड़ा रूप लेता है और बीमारी का कारण बनता है।
बीमारी संभवत: न्यूट्रांसमीटर को प्रभावित करने से होती है। शोधकर्ताओं ने लिखा, अभी तक में हुए तीन शोधों में यह बात सामने आई है कि बचपन के दिनों में बिल्लियों के साथ रहने वाले बच्चे अपनी वयस्क अवस्था होने तक शिजोफ्रेनिया और अन्य गंभीर मानसिक बीमारी के घेरे में आ जाते हैं। उन्होंने 1982 में कुछ परिवारों को बांटी गई प्रश्नावली का अध्ययन किया। इस प्रश्नावली के उत्तरों का अभी तक वैज्ञानिकों ने विश्लेषण नहीं किया था।
इस शोध में 2,125 परिवारों के अकड़े को सम्मिलित किया गया है। ये परिवार नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल इलनेश (नामी) से संबध रखते हैं। इस शोध में पता चला है की शिजोफ्रेनिया के शिकार 50.6 फीसदी लोगों के पास बचपन के दिनों में बिल्ली के साथ रहते थे। इस अध्ययन के परिणाम 1990 में किए गए दोनों अध्ययनों के समान है। इन दोनों अध्ययनों के परिणामों में क्रमश: 50.9 और 51.9 फीसद लोग शिजोफ्रेनिया के शिकार हैं और वे बिल्लियों के साथ रहते बड़े हुए हैं।
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