राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की इकोनॉमिक विंग ने यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम में सर्वाइकल कैंसर की वैक्सीन को शामिल किए जाने के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है. इसके एक दिन बाद ही स्वास्थ्य मंत्रालय ने मामले में इंतजार करने का फैसला किया है.
यह मामला अभी इम्यूनाइजेशन पर बनी टेक्निकल बॉडी के पास है, लेकिन मंत्रालय में पदस्थ उच्च सूत्रों के मुताबिक नेशनल टेक्निकल एडवायजरी ग्रुप (NTAGI) चाहे जो भी सिफारिश करे, ह्यूमन पैपिल्लोमा वायरस (एचपीवी) के खिलाफ वैक्सीन यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम में इतनी जल्दी शामिल नहीं होगी.
बता दें कि NTAGI की उप समिति ने इस बात की सिफारिश की थी भारत को एचपीवी लागू करना चाहिए. इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक स्वास्थ्य मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी ने एक सवाल के जवाब में कहा कि मंत्रालय एचपीवी पर आगे नहीं बढ़ेगा.
एचपीवी लागू करने की उप समिति की सिफारिशों पर NTAGI ने 19 दिसंबर को एक मीटिंग में इस पर चर्चा की है. हालांकि मीटिंग में इस पर कोई फैसला नहीं हो पाया. उप समिति की सिफारिशों के बारे में जैसे ही खबरें सार्वजनिक हुई संघ की आर्थिक शाखा स्वदेशी जागरण मंच ने इस बारे में प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर सुरक्षा और लागत से जुड़ी चिंताओं से वाकिफ कराया.
अपने पत्र में स्वदेशी जागरण मंच के सह संयोजक अश्विनी महाराज ने लिखा, ‘इस प्रोग्राम को लेकर हमारी चिंता है कि इससे ज्यादातर संसाधन अन्य स्वास्थ्य उपक्रमों से डायवर्ट हो जाएंगे. ऐसा करने से वैक्सीन की संदिग्ध उपयोगिता और उसके प्रतिकूल प्रभावों से नेशनल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम में लोगों का विश्वास कम होगा. साथ ही बच्चे अनावश्यक बीमारियों की जद में आ जाएंगे.
भारत में, इस वैक्सीन को अभी दो कंपनियां मार्केट में बेच रही हैं. गारडेसिल और ग्लैक्सोस्मिथकेलाइन, अभी तक ये वैक्सीन ज्यादातर प्राइवेट हाथों में ही है. अगर डॉक्टर इसकी जरूरत महसूस करते हैं या मरीज मांग करते हैं, तो वैक्सीन दी जाती है. वैक्सीन के एक डोज की कीमत मौजूदा दौर में 300-325 रुपये पड़ती है.
पत्र में कहा गया है, ‘स्वदेशी जागरण मंच आप से सिफारिश करता है कि एचपीवी वैक्सीन को भारत में लागू न करें. हम उन लोगों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई की सिफारिश करते हैं जो विज्ञान को विकृत कर रहे हैं. इससे देश में वैज्ञानिक समुदाय की बदनामी होगी और निहित स्वार्थों के लिए देश को बेचा जा रहा है.’
क्या है ह्यूमन पैपिल्लोमा वायरस
ह्यूमन पैपिल्लोमा वायरस (एचपीवी) 150 से ज्यादा वायरसों का एक समूह होता है, जो शरीर के विभिन्न हिस्सों में गांठ या मस्सा का कारण बनते हैं. इसमें जनेन्द्रिय भी शामिल है. ये वायरस आपसी संपर्क के जरिए बढ़ते हैं और कैंसर सहित कई बीमारियों की वजह बनते हैं. ये वायरस मुख्य तौर पर गर्भाशय के कैंसर के लिए जाने जाते हैं.
एचपीवी सर्वाइकल कैंसर के मुख्य कारणों में से एक है, लेकिन यह पर्याप्त कारण नहीं है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सर्वाइकल कैंसर की रोकथाम के लिए एचपीवी वैक्सीनेशन की सिफारिश की थी. 2017 में जारी यूएन के एक पेपर में 9 से 14 साल की बच्चियों के बीच एचपीवी को प्राइमरी टारगेट के रूप में चिन्हित किया गया.
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ वुमेन्स हेल्थ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल 1 लाख 22 हजार 844 सर्वाइकल कैंसर के मामले सामने आते हैं. इन महिलाओं में 67 हजार 477 की मौत हो जाती है.
भारत में 15 साल से ज्यादा उम्र की महिलाओं की आबादी 43 करोड़ से ज्यादा है, जिनमें कैंसर के पनपने का खतरा होता है. सर्वाइकल कैंसर 15 से 44 साल की महिलाओं को दूसरा सबसे ज्यादा होने वाला कैंसर है.