सामने आया समुद्र मंथन का सबसे बड़ा सबूत…मिल गया मन्दरांचल पर्वत… लोग बोले जय हो

सामने आया समुद्र मंथन का सबसे बड़ा सबूत…मिल गया मन्दरांचल पर्वत… लोग बोले जय हो

हिन्दू धर्म में एक बात का जिक्र अक्सर किया जाता है और वो है समुद्र मंथन. कहा जाता है कि देवताओं और दानवों ने मिल कर समुद्र को मथा और उसके गर्भ से कई अनमोल चीजें मिलीं. इनमें से सबसे दुर्लभ चीज थी अमृत, विष भी निकला जिसे महादेव ने पी लिया. अमृत का नाम सुनते ही आपको दिमाग में इस पौराणिक घटना स्मरण हो जाता है. मंथन करते देवतागण और राक्षस. जिसके बाद समुद्र से अमृत निकता है और राक्षस उसे लेकर भाग जाते हैं.सामने आया समुद्र मंथन का सबसे बड़ा सबूत…मिल गया मन्दरांचल पर्वत… लोग बोले जय होअमृत और विष के अलावा दूसरी कई वस्तुएं प्राप्त हुई…

 

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समुद्र मंथन के दौरान अमृत और विष के अलावा दूसरी कई वस्तुएं प्राप्त हुई थी. क्या यह घटना सत्य है ? क्या वाकई ऐसा कुछ हुआ है अगर हाँ तो क्या इसका कोई साक्ष्य मौजूद है? क्या इसमें कोई सच्चाई है कि समुद्र मंथन सच में हुआ था? आज हम आपको इसी उल्लेख में बता रहे है. दरअसल वासुकि नाग को पर्वत पर लपेट कर देव और दानवों ने समुद्र को मथा था.

पिछले कुछ सालों तक इसे महज पौराणिक कथा माना जाता था लेकिन गुजरात में द्वारिका मिलने के बाद उससे थोड़ा आगे एक पर्वत मिला है जिसे मंदराचल पर्वत बताया जा रहा है. आर्कियोलॉजी और ओशनोलॉजी डिपार्टमेंट ने सूरत जिले के पिंजरात गांव के पास समुद्र में मंदराचल पर्वत होने का दावा किया है. आर्कियोलॉजिस्ट मितुल त्रिवेदी के अनुसार बिहार के भागलपुर के पास भी एक मंदराचल पर्वत है और गुजरात के समुद्र से निकला यह पर्वत भी उसी का हिस्सा लग रहा है.

 

समुद्र में मिला यह पर्वत शोध का विषय है…

बिहार और गुजरात में मिले इन दोनों पर्वतों का निर्माण एक ही तरह के ग्रेनाइट पत्थर से हुआ है. इस तरह यह दोनों पर्वत एक ही हैं, जबकि आमतौर पर ग्रेनाइट पत्थर के पर्वत समुद्र में नहीं मिला करते. इसलिए गुजरात के समुद्र में मिला यह पर्वत शोध का विषय है. खोजे गए पर्वत के बीचोंबीच नाग आकृति भी मिली है. पर्वत पर नाग आकृति मिलने से ये दावा और भी पुख्ता होता है. आपकी जानकी के लिए बता दें कि पिंजरत गांव के समुद्र में 1988 में प्राचीन द्वारकानगरी के अवशेष मिले थे.

 

तब समुद्र के गर्भ में एक पर्वत मिला था. ओशनोलॉजी डिपार्टमेंट ने पर्वत के बाबत गहन अध्ययन शुरू किया. पहले माना गया कि घिसाव के निशान जलतरंगों के हो सकते हैं. विशेष कॉर्बन टेस्ट किए जाने के बाद पता चला कि यह पर्वत मांधार पर्वत है. पौराणिक काल में समुद्रमंथन के लिए इस्तेमाल हुआ पर्वत है. ओशनोलॉजी डिपार्टमेंट ने वेबसाइट पर लगभग 50 मिनट का एक वीडियो जारी किया है.

 

इसमें पिंजरत गांव के समुद्र से दक्षिण में 125 किलोमीटर दूर 800 की गहराई में समुद्रमंथन के पर्वत मिलने की बात भी कही है. वीडियो में द्वारकानगरी के अवशेष की भी जानकारी है.

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