गुरूवार अर्थात् शिरडी के श्री सांईबाबा का वार। यह वार ऐसा वार है जिस दिन श्रद्धालु अपने अपने गुरू श्री सांईबाबा का पूजन करते हैं। यही नहीं श्रद्धालु इस दिन भगवान दत्तात्रेय का पूजन भी करते हैं। भगवान दत्तात्रेय अर्थात् श्री गुरू। जिनमें साक्षात् ब्रह्मा विष्णु और महेश के तीन स्वरूप हैं। भगवान के ये तीन स्वरूप श्रद्धाओं को शक्ति प्रदान करते हैं। यूं तो भगवान दत्त के कई मंदिर हैं मगर कुछ मंदिर ऐसे हैं जहां श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण होती है। दर्शनमात्र से भगवान अपने श्रद्धालुओं की सारी मुरादें पूरी करते हैं। जी हां, भगवान श्री दत्तात्रेय। कुछ ऐसा ही है उनका स्वरूप। भगवान में तीनों ही आदि देवों की शक्तियां समाई हुई है। भगवान दत्तात्रेय के इन मंदिरों में देवास के समीप स्थित श्री दत्त पादुका मंदिर
भी बेहद जागृत स्थान है। इस स्थान पर भगवान जागृत अवस्था में विराजमान हैं। इस श्री क्षेत्र का स्मरण करने मात्र से श्रद्धालु संकट से मुक्त होता है। यही नहीं श्रद्धालुओं को यहां असीम शांति का अनुभव होता है। मंदिर में प्रतिदिन भक्त आते हैं लेकिन यहां विशेषतौर पर गुरूवार के दिन श्रद्धालुओं का तांता लगता है। श्रद्धालु यहां पीली वस्तुऐं, पीला पुष्पहार आदि समर्पित करते हैं और भगवान को प्रसन्न करते हैं।
यहां भगवान की पादुकाऐं प्रतिष्ठापित हैं तो दूसरी ओर यहां भगवान की दीव्य प्रतिमा भी प्रतिष्ठापित है। भगवान अपने मनोहारी स्वरूप में श्रद्धालुओं को दर्शन देते हैं। यही नहीं यहां विशेष कामना के लिए गुरूवार की आराधना करते हैं। इस आराधना में श्रद्धालु निराहार रहरकर भगवान के मंदिर की 11 परिक्रमा लगाते हैं। भगवान की परिक्रमा संपन्न होने पर उपवास में मान्य कुछ सामग्री भगवान को
भोग लगाकर स्वयं ग्रहण करते हैं। इसके बाद एकासना व्रत कर वे पांच गुरूवार की आराधना करते हैं तो दूसरी ओर लगातार पांच गुरूवार के अंतिम दिन अर्थात् पांचवे दिन परिक्रमा पूर्ण होने पर श्रद्धालु भगवान श्री दत्तात्रेय के चरणों में नारियल समर्पित कर मंदिर में पवित्र रक्षासूत्र से बांध देते हैं और अपनी मनोकामना मांगते हैं। जब मनोकामना पूर्ण हो जाती है तो श्रद्धालु भगवान का धन्यवाद ज्ञापित करने जरूर आते हैं।