New Delhi: आप किसी को बड़ा आदमी क्यों कहते हैं? जाहिर-सी बात है लोगों ने बड़े होने की परिभाषा को दौलत और समृद्धि से जोड़ लिया है। जिसके पास जितनी दौलत वो उतना बड़ा आदमी।
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भौतिक दुनिया का यही सत्य है, लेकिन आध्यात्मिक दुनिया की बात करें तो प्रेम, करूणा, दया कमाने वाला व्यक्ति संसार का सबसे अधिक धनी मनुष्य है। पौराणिक कथाओं में ऐसा ही एक प्रसंग है श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता था। जिनकी धनिष्ठ मित्रता ने संसार को एक नई परिभाषा दी।
मित्रता में कोई अमीर-गरीब, जाति या वर्ग मायने नहीं रखता। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि श्रीकृष्ण के मित्र होने के बाद भी सुदामा इतने गरीब क्यों थे। पौराणिक कथा के अनुसार सुदामा ने स्वयंं एक श्राप ग्रहण किया था।
एक गरीब ब्राह्मण स्त्री की कथा
एक ब्राह्मण स्त्री भगवान वासुदेव की भक्त थी। वो अपनी कुटिया में अकेली रहती थी। वो इतनी गरीब थी कि भिक्षा मांगकर जीवन यापन करती थी।
एक दिन उसे 5 दिन तक खाने को कुछ नहीं मिला। उसने पानी पीकर और भजन गाकर अपनी भूख शांत की। छठवें दिन उसे दो मुट्ठी चने मिले। उसने सोचा कि प्रातकाल: प्रभु वासुदेव को भोग लगाकर उन चनों को ग्रहण करूंगी।
ये सोचकर वो चनों को एक पोटली में बांधकर सो गई। रात में चोर उस कुटिया में घुस आए। चोरों की नजर पोटली पर पड़ी। पोटली को देखकर उन्हें लगा कि इस में चांदी के सिक्के अथवा कोई मूल्यवान धातु है। ये सोचकर वो वहां से पोटली सहित भाग गए।
चोर पहुंचे संदीपन ऋषि के आश्रम
घबराए हुए चोर भागते-भागते संदीपन ऋषि के आश्रम में पहुंच गए। उनकी आहत सुनकर ऋषि की पत्नी जाग गई। उनकी पत्नी की आवाज सुनकर चोर घबराकर पोटली छोड़ भाग गए। सुबह उठकर जब संदीपन ऋषि की पत्नी ने पोटली को खोलकर देखा तो उसमें चने थे। गुरूमाता ने वो पोटली, जंगल में लकड़ी काटने जा रहे कृष्ण और सुदामा को दे दी।
ब्राह्मणी ने दिया श्राप
इधर जब ब्राह्मणी की आंखें खुली तो उन्हें पता चल गया कि किसी चोर ने वो पोटली चुरा ली थी। तब 6 दिन से भूख से व्याकुल ब्राह्मणी ने दुखी मन से श्राप देते हुए कहा ‘जो भी व्यक्ति वो चने खाएगा उसकी स्थिति भी मुझ जैसी दरिद्र हो जाएगी, उसे भी कई दिनों तक भोजन नहीं मिलेगा।
सुदामा को ज्ञात हो गया था ब्राह्मण स्त्री का श्राप
सुदामा की अनुभूति शक्ति बड़ी तीव्र थी। उन्हें पोटली को पकड़ते ही ब्राह्मणी का श्राप ज्ञात हो गया था, इसलिए जंगल में जब भयानक तूफान आया और श्रीकृष्ण को भूख लगी तो सुदामा ने उनका हिस्सा भी खा लिया, क्योंकि वो जानते थे कि अगर उन्होंने वो चने खा लिए तो उनके परम मित्र कृष्ण को भी ब्राह्मणी का श्राप लग जाएगा। इस तरह सच्ची मित्रता निभाते हुए सुदामा ने ब्राह्मणी का श्राप स्वयं ग्रहण कर लिया।
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