भाजपा आलाकमान अपने सहयोगी दल शिवसेना को ज्यादा भाव देने के मूड में नहीं है। यही वजह है कि शिवसेना के जरिए अगला लोकसभा और विधानसभा का चुनाव राजग से अलग हटकर अकेले लड़ने के ऐलान के बावजूद भी भाजपा नेतृत्व रिलैक्स मोड में नजर आ रहा है। केंद्रीय नेतृत्व के जरिए बयान देने के बदले शिवसेना की सियासत पर प्रदेश नेतृत्व से ही बयान जारी करवाए गए। पार्टी के एक शीर्ष नेता का कहना है कि शिवसेना का मामला प्रदेश की राजनीति से जुड़ा है, इसलिए जो भी कुछ बातचीत या कदम उठाना होगा, वह प्रदेश भाजपा के जरिए होगा। उक्त नेता के अनुसाार हमने अभी हाल फिलहाल में कुछ भी ऐसा नहीं किया है, जिससे शिवसेना ने ऐसा निर्णय लिया है। शीर्ष नेता के अनुसार भाजपा में सहिष्णुता अधिक है।
सियासी जवाब देने उतरे सेलार-फडणवीस
भाजपा नेतृत्व की रणनीति पर अमल करते हुए शिवसेना विवाद पर प्रदेश भाजपा ने ही बयानबाजी की है। 2019 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा से गठबंधन तोड़ने के शिवसेना के ऐलान के बाद पहली प्रतिक्रिया देते हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री देवेंद्र फणडवीस ने कहा है कि सूबे की भाजपा-शिवसेना सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी।
सेना के जरिए गठबंधन तोड़ने के ऐलान पर प्रतिक्रिया जताते हुए महाराष्ट्र भाजपा अध्यक्ष आशीष सेलार ने कहा कि शिवसेना से ऐसे कदम की उम्मीद नहीं थी। इससे शिवसेना का ही नुकसान होगा। अकेले दम पर चुनाव लड़ने के लिए भाजपा पूरी तरह से तैयार है।
इन वजहों से रिलैक्स मोड में भाजपा
भाजपा के जरिए शिवसेना को ज्यादा भाव न मिलने की वजह खुद शिवसेना है। भाजपा नेतृत्व के सामने इस वक्त शिवसेना का नेतृत्व एक तो राजनीतिक रूप से बौना है तो दूसरा भाजपा से अलग लड़कर शिवसेना ने अपनी ताकत कमजोर की है। वहीं अलग लड़कर भाजपा ने अपनी जमीनी ताकत बढ़ाई है। यही वजह है कि भाजपा नेतृत्व शिवसेना को ज्यादा तूल देने के मूड में नहीं है।
राजग में शिवसेना के कमजोर रुतबे का असर 2014 से दिखने लगा था। लोकसभा चुनाव में शिवसेना ने ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ा और कम सीटों पर उसे जीत मिली, जबकि चुनौती वाली सीटें भी भाजपा जीतने में कामयाब रही थी। उसके बाद इसी वर्ष के अंत में हुए राज्य विधानसभा के चुनाव में शिवसेना ने भाजपा से अलग हटकर चुनाव लड़ा।
शिवसेना और भाजपा की सीटों में करीब दर्जन से ज्यादा सीटों का अंतर रहा। जीत के मायने में शिवसेना पर भाजपा भारी रही थी। खुद से शिवसेना ने प्रदेश सरकार में भाजपा के साथ भागीदारी की। यही वजह रही कि केंद्र में भी शिवसेना को दमदार हिस्सेदारी और मंत्रालय नहीं मिले। उसके बाद वर्ष 2017 के निकाय चुनावों में भी शिवसेना ने भाजपा से अलग होकर चुनाव लड़े। हालांकि मुंबई में वह अपना निगम बचाने में कामयाब रही, मगर अन्य जगहों पर भाजपा फायदे में रही।
सूबे में शिवसेना की राजनीतिक जमीन कमजोर होती जा रही है। मौके का लाभ देख भाजपा ने शिवसेना से समझौते में दबने के बजाय आक्रामक रुख अपनाते हुए जमीन पर अपना राजनीतिक विस्तार किया है। यही वजह है कि भाजपा नेतृत्व शिवसेना को भाव देने के मूड में नहीं है। पार्टी को उम्मीद है कि अपने आक्रामक रवैये के चलते भाजपा इससे सियासी नुकसान की भरपाई कर लेगी।
शरद पवार का खेल भी मान रही पार्टी
भाजपा आलाकमान शिवसेना की बगावत को बेशक भाव देने के मूड में नहीं है, मगर सूबे के सियासी हालातों पर उसकी पूरी नजर है। पार्टी को इसमें राकांपा प्रमुख शरद पवार का सियासी खेल भी नजर आ रहा है। कोरेगांव की घटना को बढ़ावा देने के मामले में भी भाजपा नेताओं को पवार समर्थकों का हाथ नजर आया था।
सूत्र बताते हैं कि केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के साथ पवार के अपने सियासी समीकरण बढ़ाकर देवेंद्र सरकार के लिए कांटे पैदा करने की रणनीति बनाई है। अब शिवसेना के जरिए भाजपा से दूरी दिखाने के ऐलान के राजनीतिक खेल में भी भाजपा को पवार का सियासी दांव नजर आ रहा है। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की नजर पवार के राजनीतिक कदमों पर भी है।