पूरे विश्व मे आज भी सैनिटरी पैड को इस्तेमाल करने के बाद अधिकतर ऐसी महिलाएं हैं, जो खुले में पैड फेंक देती हैं. जिसकी वजह से पर्यावरण दूषित होता है. आंकड़ों के अनुसार देश में हर साल 1,13,000 सैनिटरी पैड कचरे में तब्दील होकर पर्यावरण पर बोझ बन जाते है. जो पर्यावरण के लिए हानिकारक है. वैज्ञानिकों के मुताबिक सबसे बड़ी चुनौती तो इन्हीं सैनेटरी पैड के बोझ को कम करने की है. लिहाजा वैज्ञानिकों ने हर्बल सैनेटरी पैड फ्लोरिश का आविष्कार किया है.

हर्बल सैनेटरी पैड फ्लोरिश 3 महीने से 5 महीने के अंदर फर्टिलाइजर में तब्दील हो जाएगा. जबकि पॉलीमर से बने हुए सैनेटरी पैड सालों तक ऐसे ही पड़े रहते हैं. हर्बल सैनेटरी पैड फ्लोरिश को न्यूजीलैंड में प्रयोग किया जाने लगा है. इस हर्बल सैनटरी पैड की कीमत भी बाजार में उपलब्ध पॉलीमर से बने हुए सैनटरी पैड जितनी ही बताई जा रही है.
वैज्ञानिक वैशाली राठी का कहना है कि ‘फ्लोरिश’ एक हर्बल सैनेटरी पैड है. जिसको बनाने में वैज्ञानिकों ने बैंबू फैब्रिक यानी बॉस, केला, नीम, बैंबू कॉटन और ग्राफीन नैनो मैटेरियल का प्रयोग किया है.
इन चीजों का प्रयोग करने से यह सैनेटरी पैड एंटीबैक्टीरियल और एंटीफंगल होगा. सबसे बड़ी बात तो यह है कि अगर इसको प्रयोग करने के बाद महिलाएं इसे बाहर खुले में फेंक भी देती हैं तो यह आसानी से डिस्पोज भी हो जाएगा.
उन्होंने कहा कि मार्केट में जो सैनेटरी पैड आते रहे हैं वह पॉलीमर के बनते हैं. पॉलीमर आसानी से डिस्पोज नहीं होता और एक बार प्रयोग में आने के बाद अगर इसको फेंक दिया जाए तो सालों तक एक ही स्थिति में पड़ा रहता है. लिहाजा इसका सबसे ज्यादा प्रभाव वातावरण पर पड़ता है.
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