जौनपुर जिले के मड़ियाहूं के रजमलपुर गांव निवासी केंद्रीय विद्यालय के शिक्षक ने मानवीय रोबोट तैयार किया है। नौ भारतीय और 38 विदेशी भाषा बोलने में सक्षम यह रोबोट कृत्रिम बुद्धि वाला है। इसे शालू नाम दिया है। खास बात यह कि इसका निर्माण बेहद साधारण प्लास्टिक, गत्ता, लकड़ी व एल्युमिनियम की वस्तुओं से किया गया है। यह रोबोट मानव की तरह ही व्यवहार व हावभाव भी दर्शाती है। इसे बनाने में तीन वर्ष का समय और 50 हजार रुपये की लागत आई है।
रजमलपुर गांव निवासी दिनेश पटेल ने एमसीए की पढ़ाई की है। वह मुंबई आईआईटी के केंद्रीय विद्यालय में कंप्यूटर साइंस के शिक्षक हैं। फिल्म रोबोट से प्रभावित होकर उन्होंने मानवीय रोबोट बनाने की पहल की। हांगकांग की रोबोटिक्स कंपनी हैंसन रोबोटिक्स की सोफिया रोबोट उनकी प्रेरणा बनी।
देश में ही वैसा रोबोट बनाने के लिए उन्होंने वर्ष 2017 में प्रयास शुरू किया। अनुकूल संसाधन और महंगे उपकरण उनकी राह के रोड़े बने। हार न मानते हुए उन्होंने इसे अपने आसपास मौजूद सामानों से ही तैयार करने की ठानी। लकड़ी, गत्ता, एल्युमिनियम, प्लास्टिक का इस्तेमाल कर करीब तीन साल की मेहनत से उन्होंने इस रोबोट को तैयार किया है। इसे शालू नाम के साथ महिला का रूप दिया है।
इसकी प्रोग्रामिंग भी उन्होंने खुद की है। दिनेश का दावा है कि यह पहला मानवीय रोबोट है, जिसे भारत में तैयार किया गया है। यह हिंदी, भोजपुरी, मराठी, बंगला, गुजराती, तमिल, मलयालम, नेपाल, उर्दू के अलावा अंग्रेजी, जर्मन, जापानी सहित 38 विदेशी भाषाओं में भी बातचीत में सक्षम है।
रोबोट “शालू” रोबोशालू के नाम से भी चर्चित है। यह आम लोगों की तरह ही चेहरा पहचानने, व्यक्ति को मिलने के बाद याद रखने, उसके साथ बातचीत करने, कई सामान्य वस्तुओं की पहचान करने, सामान्य ज्ञान, गणित आदि पर आधारित शैक्षिक प्रश्नों का उत्तर देने में सक्षम है।
यह मानव की तरह ही हाथ मिलाना, मजाक करना, खुशी, क्रोध, जलन दर्शाना, दैनिक समाचार पढ़ना, दैनिक राशिफल पढ़ना, रेसिपी बताना, प्रश्नोत्तर और साक्षात्कार भी कर सकती है। रोबोट शिक्षक के रूप में किसी स्कूल में काम कर सकती है। विभिन्न कार्यालयों में एक रिसेप्शनिस्ट के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है।
इसी वर्ष नवंबर में तैयार दिनेश पटेल के इस रोबोट को आईआईटी मुंबई के कई प्राध्यापकों ने भी सराहा है। उनका कहना है कि रोबोट शालू उन युवा, ऊर्जावान भावी वैज्ञानिकों के लिए उदाहरण और प्रेरणा का श्रोत बन सकती है जो समर्थन और प्रोत्साहन के अभाव में पिछड़ जाते हैं। उन्होंने बताया कि शालू अभी एक प्रोटोटाइप है। इसे और बेहतर बनाने के लिए वर्जन-2 पर भी काम शुरू कर दिया है।