वैसे तो अरसे से प्रियंका गांधी के राजनीति में उतरने के कयास लग रहे थे, लेकिन प्रियंका गांधी अपने बच्चों के बड़े होने हो जाने तक इंतजार करने की बात करती रहीं. दरअसल, सोनिया तय कर चुकी थीं कि, जनकी जगह घर के बड़े बेटे राहुल ही लेंगे. ऐसे में प्रियंका अपनी भूमिका की तलाश में रहीं और खुद को अमेठी-रायबरेली में ही सीमित कर लिया. हां, पर्दे के पीछे वो हर बड़ी रणनीति का हिस्सा रहीं.
2017 के विधानसभा चुनाव में जब सपा से तालमेल नहीं हुआ तो उस वक्त कांग्रेस के रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर ने राहुल नहीं तो प्रियंका को यूपी कांग्रेस का चेहरा बनाकर उतारने की सलाह दी थी, जिसे गांधी परिवार ने ठुकरा दिया था. इसकी दो वजहें थीं, एक तो राहुल की इमेज आज जैसी नहीं थी और दूसरी अगर प्रियंका सफल हो जातीं तो बाकियों के अलावा कांग्रेसी ही भाई-बहन में तुलना करके राहुल के लिए परेशानी खड़ी कर देते. आखिर दबी जुबान से कांग्रेसियों का एक तबका राहुल की चुनावी असफलताओं के वक्त प्रियंका को उनके विकल्प ले तौर पर मानकर चल रहा था. गाहे-बगाहे इस तरह की आवाजें सुनीं जाती रहीं और पोस्टर देखे जाते रहे. यह उस समय की बात है जब राहुल पार्टी अध्यक्ष भी नहीं बने थे.
पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद राहुल ने संगठन में बागी सुरों को शांत रखते हुए बदलाव किया, फिर गुजरात में बीजेपी को कड़ी टक्कर दी, कर्नाटक में राजनीतिक परिपक्वता दिखाते हुए जेडीएस के साथ मिलकर बीजेपी को दूर रखा. आखिर में तीन राज्यों की जीत के बाद राहुल का आत्मविश्वास चरम पर पहुंच गया. इसके साथ ही जब तीन राज्यों में कांग्रेस के जीतने के बाद पहली बार अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी पहुंचे, तभी प्रियंका की नई जिम्मेदारी का ऐलान हुआ. उससे पहले अमेठी में राहुल को पीएम बनाने के पोस्टर और नारों के बीच राहुल की मुस्कुराहट काफी कुछ बयां रही थी. यानी देशभर में राहुल और उनके सहयोग के लिए प्रदेश में प्रियंका और सिंधिया को चुना गया.
हुआ यूं कि, राहुल ने मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए आर-पार की लड़ाई का मन तो बना लिया. लेकिन इसी बीच जब सपा-बसपा ने गठजोड़ में कांग्रेस के लिए यूपी में सिर्फ दो सीटें छोड़ीं, तो राहुल ने प्रियंका को उतारने की तैयारी कर ली. इस दौरान राहुल ने अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं से कहा कि, चिंता ना करें वो जल्दी ही यूपी में 440 बोल्ट का झटका देंगे.
लेकिन सूत्रों के मुताबिक, दिलचस्प ये है कि, शुरुआत में प्रियंका इसके लिए तैयार नहीं थीं. प्रियंका का मानना था कि, वक्त कम है, ऐसे में वो तुरंत इस भूमिका के लिए खुद को तैयार नहीं कर पा रहीं. राहुल ने अपनी छोटी बहन को मनाने में मशक्कत की, अपने सामने बड़ी चुनौती का हवाला दिया. आखिर में बड़े भाई की मदद के लिए प्रियंका ने हामी भर दी.
कुल मिलाकर इस मौके पर प्रियंका की यूपी के जरिए राहुल ने एंट्री कराकर विपक्षियों के लिए बड़ी चुनौती खड़ी करने की कोशिश तो की ही. साथ ही प्रियंका की तरह ज्योतिरादित्य को पश्चिमी यूपी का प्रभार देकर बात दिया कि, कांग्रेस के बॉस सिर्फ और सिर्फ राहुल हैं.
घरेलू सहायकों और कार्यकर्ताओं में भैय्या जी के नाम से और नेताओं के बीच पीजी के नाम से जानी जाने वाली बहन प्रियंका का करिश्मा यूपी में चला तो वो काम राहुल के ही आएगा. वैसे भी चर्चाएं कुछ भी हों लेकिन खुद प्रियंका भी हमेशा से राहुल की जगह लेने की बजाय उनके पीछे खड़े होकर उनकी मदद करने की ही इच्छा रखती रहीं हैं और वो अपने बड़े भाई को बतौर प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहती हैं.
कुल मिलाकर राहुल ने अपना आखिर ब्रम्हास्त्र तो चल दिया है, साथ ही गांधी परिवार पर बीजेपी की ओर से लगाए गए परिवारवाद के आरोपों का जवाब भी जनता के बीच मजबूती से देना होगा. अब इंतजार है 2019 के नतीजों का, जो बताएंगे राहुल का निशाना ठीक जगह पर लगाया जाया चला गया.
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