आगरा: 25 दिसंबर (1924) को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्मदिन है। यूपी के बीहड़ में स्थित बटेश्वर अटल का पैतृक गांव है।
यहां आज भी उनकी फैमिली के लोग रहते हैं। इस गांव का इतिहास जितना वैभवशाली है, उतना ही बुनियादी समस्याओं से जूझ रहा है। हैरानी की बात ये है कि आजतक इस गांव को किसी भी सांसद ने गोद नहीं लिया।
ऐसे पानी भरकर घर ले जाती है अटल जी की बहू
अटल बिहारी के भतीजे (68 साल) रमेश चंद्र वाजपेयी ने बताया कि मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है, इसलिए पत्नी को ही सारा काम देखना होता है। आस-पास के 6 घरों के लिए एक हैंडपंप लगा हुआ है। पाइपलाइन नहीं है। मजबूरी में, पत्नी को काफी दूर से पानी भरकर लाना होता है।
अटल जी जब से बीमार हुए हैं, तब से गांव के विकास के बारे में कोई पूछने भी नहीं आता। रोजाना 16 घंटे से ज्यादा बिजली कटौती होती है। बटेश्वर गांव, फतेहपुर सीकरी लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है। इसके सांसद चौधरी बाबूलाल हैं। उन्होंने बताया कि सांसद ने भी हमारे गांव को गोद लेने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। वहीं, सांसद के प्रवक्ता रामेश्वर कहते हैं कि बटेश्वर के विकास में सांसद ने काफी योगदान किया है। वाजपेयी मोहल्ले की सड़क बनवाई गई है।
2003 में आखिरी बार अटल जी गए थे अपने गांव
बटेश्वर गांव के वाजपेयी मोहल्ले में 90 के दशक तक रौनक रहती थी। यहीं से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनीति शुरू की थी। अब वाजपेयी मोहल्ला उजड़ चुका है। अटल जी का घर खंडहर बन चुका है। इनके घर के आस-पास पांच मकान और परिवार मौजूद हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री के भतीजे और रिटायर्ड टीचर रमेश चंद्र ने बताया, अच्छा भविष्य बनाने के लिए वाजपेयी मोहल्ले का परिवार शहरों में चला गया। ज्यादातर लोग तो कभी लौटकर नहीं आए। आखिरी बार अटल जी यहां साल 2003 में आए थे। उस समय उन्होंने रेल लाइन का शिलान्यास किया था।
कुछ ऐसा है अटल जी के गांव का इतिहास
बटेश्वर को तीर्थस्थल नहीं, बल्कि तीर्थराज कहा जाता है। वह इसलिए, क्योंकि यहां आस्था के केंद्र 101 शिव मंदिर हैं। मंदिर के घाटों को छूती यमुना यहां विपरीत दिशा में बहती हैं। पानीपत के तीसरे युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए हजारों मराठों की स्मृति में मराठा सरदार नारू शंकर ने बटेश्वर में एक विशाल मंदिर का निर्माण कराया था, जो आज भी है।