भारत में दो दर्जन नए स्ट्रेन के मामले प्रकाश में आ चुके हैं और इसको लेकर विशेषज्ञ और वैज्ञानिक लगातार कोरोना की संख्या में घटोत्तरी के बावजूद ज्यादा सावधान रहने की सलाह दे रहे हैं. भारत फिलहाल विश्व के कई विकसित देशों की तुलना में काफी बेहतर आंकड़े पेश कर रहा है लेकिन पिछले तीन दिनों में जिनोम सिक्वेंसिंग में पाए गए दो दर्जन मामलो ने भारत की चिंता बढ़ा दी है.

दरअसल, भारत में अब एक्टिव केस की संख्या ढ़ाई लाख के आसपास पहुंच चुकी है. वहीं 96 लाख से ज्यादा लोग कोरोना की बीमारी से रिकवर हो चुके हैं. लेकिन तीन दिनों में मिले 25 कोरोना के नए स्ट्रेन के केसेज ने भारत सरकार के लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं. भारत सरकार ने इन नए मामलों के लिए दस लैब का समूह तैयार किया है साथ ही नेशनल टास्क फोर्स बनाकर जिनोमिक सर्विलांस बढ़ाने पर जोर दिया है. ज़ाहिर है नए स्ट्रेन की ज्यादा संक्रामकता भविष्य में खतरे के प्रति आगाह करने लगा है.
भारत में दस प्रयोगशालाओं के समूह ने 5000 लोगों के जिनोम सिक्वेंसिंग कर वायरस के स्वभाव को लेकर जानकारी हासिल करने की कोशिश की है. बाहर से आए तमाम लोगों का RTPCR टेस्ट किया जा रहा है और पॉजिटिव पाए जाने पर उनके सैंपल का जिनोम सिक्वेंसिंग किया जाना तय है. ज़ाहिर है भारत यूके, अमेरिका, ब्राजील , इटली जैसे हालात से बचने के लिए नेशनल टास्क फोर्स का गठन कर उस पर लगाम कसने के लिए प्रयासरत हैं. दस बड़े विकसित देश जहां, हालात सितंबर के बाद खराब हुए हैं वैसे हालात से बचने के लिए भारत हर मोर्चे पर गंभीर दिखाई पड़ रहा है.
यही वजह है कि विकसित देश के आंकड़ों और भारत की स्थिति बेहतर पेश करते हुए नीति आयोग सदस्य वी के पॉल ने इस बात पर बार-बार जोर दिया कि हमें यूरोप के देशों और अमेरिका से सबक लेते हुए ज्यादा सावधान रहने की क्यों जरूरत है. दरअसल यूके के स्ट्रेन साउथ अफ्रिका में मिले स्ट्रेन से ज्यादा संक्रामक बताए जा रहे हैं और इसके 70 फीसदी ज्यादा संक्रामकता की वजह से भारत में मिल रहे नए यूके के स्ट्रेन को लेकर परेशानी का सबब बढ़ता जा रहा है.
कोरोना के सैंकड़ों मरीज का इलाज कर चुके वाइरोलॉजिस्ट डॉ. प्रभात रंजन कहते हैं कि कोरोना की ज्यादा संक्रामकता का मतलब ज्यादा लोगों का कोरोना से पीड़ित होना है और ये कम नंबर में भी लोगों में बीमारी पैदा कर सकता है, जो पहले कम नंबर में मौजूद होकर लोगों के अंदर इम्यूनिटी पैदा किया करता था.
भारत के प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार विजय राघन के मुताबिक ज्यादा संक्रामकता की वजह 17 में से आठ परिवर्तन हैं, जो स्पाइक प्रोटीन के लिए कोड बनाता है. N501Y में एक परिवर्तन ह्यूमन सेल के रिसेप्टर (ACE2) कहते हैं उसमें आसानी से चिपक जाता है. यही वजह है कि रंदीप गुलेरिया ने आसान शब्दों में यह कह दिया कि 70 फीसदी ज्यादा संक्रामकता इंफ्रास्ट्रक्चर पर ज्यादा जोर बढ़ा सकता है क्योंकि मरीजों की बढ़ने वाली तादाद इंफ्रास्ट्रक्चर पर ज्यादा बोझ बढ़ाएगी. डॉ. प्रभात रंजन कहते हैं कि ज्यादा संक्रामकता का मतलब ही ज्यादा खतरनाक होता है क्यूंकि उसी अनुपात में मरने वालों की संख्या बढ़ेगी और इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी देश में परेशानी का सबब पैदा करेगी.
दरअसल, दुनिया के कई विकसित देशों में स्थितियां दूसरे चरण में ज्यादा खराब हुई हैं और इसकी वजह वायरस की इन्फेक्टिविटी और जेनोसिटी में परिवर्तन बताया जा रहा है. ज़ाहिर है डॉ. रंदीप गुलेरिया का ये कहना कि नए स्ट्रेन के वायरस का नवंबर या दिसंबर में भारत में आने की संभावना का मतलब है भारत में फिर से नए केसेज की संख्या बढ़ सकती है और इसके लिए लोग सहित सरकारी संस्थानों को कमर कसकर तैयार रहना पड़ेगा. वैसे कोविशिल़्ड वैक्सीन को जल्द भारतीय बाजार में लाने की बात अंतिम चरण में है लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में वक्त लगेगा इससे इन्कार नहीं किया जा सकता है. इसलिए नीति आयोग सदस्य वी के पॉल सहित, वैज्ञानिक सलाहकार और एम्स डायरेक्टर सुपर स्प्रेडर से बचने के लिए ज्यादा सावधानी की सलाह दे रहे हैं.
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