म्यांमार में सैन्य तख्तापलट को लेकर दुनियाभर में चिंता और आक्रोश है। अमेरिका, ब्रिटेन और भारत समेत विश्व के कई देशों ने इस घटनाक्रम की निंदा की है। बांग्लादेश में शिविरों में रह रहे म्यांमार के रोहिंग्या शरणार्थियों ने भी तख्तापलट की निंदा की है। उनका मानना है कि इससे उनके वापस लौटने का रास्ता और मुश्किल हो गया है। 2017 में म्यांमार की सेना ने 7 लाख से अधिक रोहिंग्या मुसलमानों को देश से बाहर निकाल दिया था।
म्यांमार से निकाले गए रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश के भीड़-भाड़ वाले शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं। बांग्लादेश उन्हें बौद्ध-बहुल म्यांमार वापस भेजने के लिए उत्सुक है। हालांकि, कई बार किए गए प्रत्यावर्तन के प्रयास विफल साबित हुए हैं, क्योंकि रोहिंग्या हिंसा के डर से वापस जाना नहीं चाहते।
संयुक्त राष्ट्र ने रोहिंग्या पर म्यांमार के सैन्य कार्रवाई को नरसंहार का एक रूप बताया था। संयुक्त राष्ट्र ने सैन्य तख्तापलट की निंदा की और सियासी बंदियों की रिहाई के साथ ही लोकतंत्र को बहाल करने की मांग की। साथ ही संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि तख्तापलट से रो¨हग्या मुस्लिमों की दशा और खराब हो सकती है।
शरणार्थियों का कहना है कि वे अब और अधिक डर गए हैं क्योंकि देश पर पूरी तरह से सेना का नियंत्रण है। कॉइन बाजार जिले के शिविरों में रोहिंग्या यूथ एसोसिएशन के प्रमुख खिन मूंग का कहना है कि म्यांमार की सेना ने हमें मारा, हमारी बहनों और माताओं के साथ बुरा व्यवहार किया, हमारे गांवों को जला दिया। उनके नियंत्रण में सुरक्षित रहना हमारे लिए कैसे संभव है?
बता दें कि सोमवार को म्यांमार की सेना ने तख्तापलट कर सत्ता पर काबिज हो गई थी। देश की सर्वोच्च नेता आंग सान सू की और राष्ट्रपति विन म्यिंट सहित कई शीर्ष नेताओं को हिरासत में ले लिया गया। साथ ही सत्ता पर पकड़ मजबूत करने के लिए देश में एक साल के लिए आपातकाल लगा दिया गया है। गत वर्ष नवंबर में म्यांमार में हुए आम चुनाव में आंग सान की नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) ने भारी बहुमत के साथ जीत दर्ज की थी। सेना ने धांधली के आरोप लगाकर नतीजों को मानने से इन्कार कर दिया था।