मोहिनी एकादशी के विषय में कहा जाता है कि समुद्र मंथन के बाद जब अमृतको लेकर देवों और दानवों के बीच विवाद हुआ था तब भगवान विष्णु मोहिनी रूप धारण किया जिसके रूप पर मोहित होकर दानवों ने अमृत का कलश उसे सौंप दिया। इसके बाद मोहिनी रूप धारी विष्णु ने सारा अमृत देवताओं को पिला दिया और देवता अमर हो गये। जिस दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया था उस दिन बैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि थी। तब से भगवान विष्णु के इसी मोहिनी रूप की पूजा मोहिनी एकादशी के रूप में की जाती है।
मोहिनी एकादशी की पूजा विधि
इस दिन प्रातः स्नान करके भगवान का स्मरण करते हुए विधि विधान से पूजा और आरती करके भगवान को भोग लगाए। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व होता है। इस दिन ब्राह्मणों तथा गरीबों को भोजन या फिर दान देना चाहिए। इस दिन तिल का लेप लगायें या फिर तिल मिले जल से स्नान करें।स्नान के बाद लाल वस्त्रों से सजे कलश की स्थापना कर पूजा की जाती है। भगवान विष्णु के मूर्ति या तस्वीर के सामने घी का दीपक जलाएं और तुलसी, फल, तिल सहित भगवान की पूजा करें। इस व्रत को रखने वाले को स्वयं तुलसी पत्ता नहीं तोड़ना चाहिए। व्रत वाले दिन निराहार रहना चाहिए। शाम में पूजा के बाद कुछ फलाहार कर सकते हैं। एकादशी के दिन रात्रि जागरण का भी बड़ा महत्व है। संभव हो तो रात में जागकर भगवान का भजन कीर्तन करें।
मोहिनी एकादशी का महत्व
इस एकादशी को संबंधों में दरार को दूर करने वाला व्रत भी माना गया है। यह व्रत बहुत ही फलदायी होता है। इस व्रत को करने से समस्त कामों में आपको सफलता मिलती है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से सभी प्रकार के पापों का नाश होता है और 10 हजार सालों की तपस्या के बराबर फल मिलता है। ऐसा भी माना जाता है कि मोहिनी एकादशी की कथा को पढ़ने से अथवा सुनने से एक हजार गोदान का फल प्राप्त होता है।