Maghe is the biggest festival for the Ho community of Jharkhand आस्था और विश्वास के साथ हो समुदाय द्वारा माघे पर्व अनोखे ढंग से सप्ताह भर प्राचीन रीति रिवाज के साथ उत्साह पूर्वक मनाया जाता है। 15 जनवरी से माघे पर्व प्रारम्भ होता है और अप्रैल माह के अन्त तक चलता है। माघे पर्व की कोई निश्चित तिथि नहीं होती। ग्रामीण गांव के मुंडा की अध्यक्षता में बैठक कर पर्व की तिथि तय करते हैं। ‘हो’ समुदाय के लिए माघे पर्व सबसे बड़ा व महत्वपूर्ण त्योहार है। ग्रामीण अलग-अलग गांव में अलग-अलग तिथि निर्धारित कर पर्व मनाते हैं। इस अवसर पर आसपास के गांवों के रहने वाले स्वजातीय बन्धुओं को आमंत्रित किया जाता है।
पहला दिन ‘जाएर जाते’
माघे पर्व की शुरुआत जाएर जाते से होती है। प्राचीन संस्कृति के अनुसार बकरा, मुर्गा-मुर्गी की पूजा करके जाहिर स्थान (पूजा स्थल) का शुद्धिकरण करके पर्व को आमंत्रित किया जाता है।
द्वितीय दिन आते इली
द्वितीय दिन आते इली के रूप में मनाया जाता है। इस दिन दिऊरी (पुजारी) के आंगन में भूमि पर हड़िया डालकर प्राचीन रिवाज के अनुसार सामूहिक पूजा अर्चना करके अपने पूवजों को
तृतीय दिन को ‘हेऐ: सकम’
तृतीय दिन को ‘हेऐ: सकम’ कहा जाता है। इस दिन गांव की औरतें जंगल से साल पत्ता एवं दातून तोड़कर लाती हैं। इन पत्तों से पूजा की जाती है।
चौथा दिन ‘गुरीई’
चौथा दिन ‘गुरीई’ के रूप में मनाया जाता है। इस दिन घर एवं आंगन की साफ सफाई करके गोबर लिपाई की जाती है।
पांचवा दिन ‘माघे पर्व’
पांचवा दिन ‘माघे पर्व’ के रूप में मनाया जाता है। यह दिन माघे पर्व का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है। इस दिन दिऊरी पूजा स्थल पर सामूहिक पूजा-अर्चना करते हैं। पूजा के तुरंत बाद मादल की थाप प्रारम्भ होती है और नृत्य-संगीत का कार्यक्रम अंतिम दिन तक चलता रहता है। माघे पर्व के इस पवित्र दिन को ‘मिलन पर्व’ भी कहा जाता है।
छठवें दिन को ‘जातरा’
छठवें दिन को ‘जातरा’ के रूप में मनाया जाता है। इस दिन गांव का द्वितीय पुजारी पूजा स्थल पर पूजा करता है।
सातवां दिन ‘हरमाघेया’
सातवां दिन ‘हरमाघेया’ के रूप में माघे पर्व का समापन किया जाता है। हरमाघेया में गांव के बच्चे लाठी-डंडा लेकर गांव के एक छोर से दूसरे छोर तक शोर मचाते हुए मुर्गा-मुर्गी को खदेड़ते हुए जाते हैं। इस दिन मुर्गा-मुर्गी को पकड़ने के लिए बच्चे स्वतंत्र रहते हैं। गांव के दूसरे छोर पर जाकर सामूहिक पूजा अर्चना करके माघे पर्व को नम आखों से विदाई दी जाती है। हाथ जोड़कर गांव को सुखी सम्पन्न रखने के लिए पूर्वजों को याद किया जाता है।
जीवन साथी चुनने की छूट
माघे पर्व के अवसर पर युवक-युवतियों को अपना जीवन साथी चुनने की छूट भी रहती है। समाज का लड़का समाज की लड़की को पसंद कर अपने घर ले जाने के लिए स्वतंत्र होता है। इस तरह लड़का एवं लड़की को एक दूसरे से राजी-खुशी विवाह करने की स्वतंत्रता है। हो समाज में इस तरह के विवाह को राजी-खुशी विवाह कहते हैं। विवाह के बाद लड़का पक्ष को ‘गोनोंग’ स्वरूप गाय, बैल, हंड़िया आदि देना पड़ता है। गोनोंग के बाद दोनों पक्ष मिलकर राजी-खुशी विवाह को सामाजिक मान्यता देते हैं। हो समुदाय में दहेज प्रथा नहीं है।
हो जनजाति पूरे झारखंड में करती है निवास
रातभर चलता है नृत्य
दहेज प्रथा के विपरीत लड़का पक्ष को ही ‘गोनोंग’ देना पड़ता है। माघे पर्व के अवसर पर मैदान में एकत्रित होकर सभी लोग नृत्य-संगीत से रात भर झूमते रहते हैं। लगातार सात रात नृत्य-संगीत का कार्यक्रम चलता है तथा दिन को अपना काम भी करते हैं। रात्रि के नृत्य-संगीत कार्यक्रम में युवक-युवतियां, स्त्री-पुरुष, बच्चे-बूढ़े सब भेदभाव से दूर हटकर कदम से कदम मिलाकर नृत्य करते हैं। माघे पर्व यहां के हो समुदाय के लिए प्राचीन संस्कृति का परिचायक है।
- माघे पर्व के अवसर पर युवक-युवतियों को अपना जीवन साथी चुनने की मिलती है इजाजत
- रात्रि के नृत्य-संगीत कार्यक्रम में युवक-युवतियां, स्त्री-पुरुष, बच्चे-बूढ़े सब भेदभाव से दूर
- 54 फीसद हो जनजाति पूरे झारखंड शिक्षित हैं
- 41 हो जनजाति की महिलाएं हैं शिक्षित