महाराष्ट्र: लिफ्ट में लड़की से छेड़छाड़ के दोषी को पांच साल जेल

मुंबई की पॉक्सो कोर्ट ने एक आवासीय इमारत के चौकीदार को पांच साल कठोर कारावास की सजा सुनाई है। उसने लिफ्ट में 10 वर्षीय लड़की के साथ छेड़छाड़ की थी। सजा सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि आरोपी ने हाउसिंग सोसाइटी के सदस्यों का भरोसा तोड़ा है।

मुंबई की एक अदालत ने एक आवासीय इमारत के चौकीदार को पांच साल कठोर कारावास की सजा सुनाई है। चौकीदार ने लिफ्ट में 10 वर्षीय लड़की से छेड़छाड़ की थी। सजा सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि चौकीदार ने हाउसिंग सोसाइटी के सदस्यों का भरोसा तोड़ा है।

यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO) के तहत मामलों के लिए विशेष न्यायाधीश एडी लोखंडे ने हाल ही में लगभग पांच साल से जेल में बंद 30 वर्षीय चौकीदार को दोषी ठहराया। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि उसकी हिरासत की अवधि को सजा के खिलाफ सेट किया जा सकता है।

अभियोजन पक्ष ने साबित किया- आरोपी ने लिफ्ट में किया था अपराध
अदालत ने सोमवार को अपने विस्तृत आदेश में कहा कि अभियोजन पक्ष ने साबित कर दिया है कि आरोपी ने इमारत की लिफ्ट में अपराध किया था, जब पीड़िता 10 साल की थी। आदेश में कहा गया है, ‘लिफ्ट में पीड़िता को आरोपी के चंगुल से बचाने वाला कोई नहीं था। लड़की को आरोपी के हाथों यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। यह निश्चित रूप से उसके लिए मानसिक आघात था।’

आरोपी ने हाउसिंग सोसाइटी के सदस्यों का भरोसा तोड़ा: कोर्ट
अदालत ने आरोपी को पांच साल के कठोर कारावास की सजा सुनाते हुए कहा कि आरोपी ने हाउसिंग सोसाइटी के सदस्यों का भरोसा तोड़ा है। सभी पहलुओं पर विचार करते हुए, मैं कोई नरम रुख अपनाने के लिए इच्छुक नहीं हूं। हालांकि, न्यायाधीश ने कहा कि मामले में गिरफ्तारी के बाद से चौकीदार 2020 से जेल में है और इसलिए, वह हिरासत में बिताई गई अवधि के लिए छूट पाने का हकदार है। यह घटना नवंबर 2020 में मुंबई के उपनगर कांदिवली में हुई थी।

अभियोजन पक्ष ने आरोपी के खिलाफ आरोप साबित किए: वकील
अतिरिक्त सरकारी वकील गीता मलंकर ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने आरोपी के खिलाफ सभी आरोप साबित कर दिए हैं। अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि आरोपी एक हाउसिंग सोसाइटी में चौकीदार के रूप में काम कर रहा था। उसने विश्वासघात किया और इसलिए उसे दंडित किया जाना चाहिए।

बचाव पक्ष का दावा- शिकायतकर्ता और आरोपी के बीच हुआ था झगड़ा
हालांकि, बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि पीड़िता ने मुकदमे के दौरान आरोपी की गलत पहचान की थी। बचाव पक्ष ने दावा किया कि शिकायतकर्ता (पीड़िता के परिवार) और आरोपी के बीच झगड़ा हुआ था। इसलिए, बदला लेने के लिए आरोपी के खिलाफ झूठी शिकायत दर्ज कराई गई।

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