ईरान से तेल खरीदने की छूट की समयसीमा न बढ़ाकर अमेरिका ने भारत की चिंताएं बढ़ा दी है। ऐसा इसलिए क्योंकि अमेरिका ने सोमवार को एक अहम फैसला करते हुए ईरान पर तेल बेचने से पूरी तरह से रोक लगा दी है। ऐसे में भारत को तेल खरीदने के लिए दूसरे विकल्प तलाशने होंगे। आपको बता दें कि अमेरिका द्वारा पूर्व में दी गई छूट की अवधि 2 मई 2019 को खत्म हो रही है। अमेरिका और ईरान के बीच खराब संबंध किसी से छिपे नहीं हैं। पिछले वर्ष मई में जब अमेरिका ने ईरान से पूर्व में हुई परमाणु डील खत्म की थी, तभी से लगातार दोनों देशों के संबंधों में गिरावट दर्ज की गई है। भारत और ईरान के व्यापारिक रिश्ते काफी समय से मजबूत रहे हैं। भारत की जरूरत का कच्चा तेल सबसे अधिक ईरान से ही आता है। ईरान के लिए भारत दूसरे नंबर पर सबसे बड़ा कच्चे तेल का खरीददार है। वर्ष 2010-11 तक भारत सउदी अरब के बाद सबसे ज्यादा तेल ईरान से ही खरीदता रहा था। चीन और भारत ईरान से बड़े पैमाने पर तेल का आयात करते हैं। इसलिए अमेरिकी प्रतिबंध सख्त होने से तनाव बढ़ सकता है, जिसका असर व्यापार सहित दूसरे क्षेत्रों पर भी पड़ सकता है।
अमेरिका के लिए यदि ईरान को साधना है तो उसके लिए भारत को उससे अलग करना बेहद जरूरी है। यही वजह है कि तेल खरीद पर प्रतिबंध लगाकर अमेरिका ने यह काम आसानी से कर दिखाया है। इसके अलावा भारत में मौजूद आतंकी मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने के लिए अमेरिका की तरफ टकटकी लगाकर देख रहा है। अमेरिका ने इसका भी फायदा उठाने की कोशिश की है। दरअसल अमेरिका चाहता है कि भारत ईरान के बदले मसूद पर सौदा को हां कह दे। बहरलहाल, अमेरिका की समय सीमा खत्म होने में कुछ ही दिन शेष हैं ऐसे में भारत को जल्द फैसला लेना होगा। आपको बता दें कि दुनिया के सबसे बड़े तेल उत्पादक देश वेनेजुएला से भी अमेरिका के संबंध लगातार खराब रहे हैं। वहीं ईरान भी इसी श्रेणी में आता है।
अमेरिका ये भी चाहता है कि भारत उससे या सऊदी अरब से तेल खरीदे। इसमें उसको हर तरह से फायदा है। भारत के साथ में वर्तमान में एक बड़ी समस्या ये भी है कि वह फिलहाल देश में आम चुनाव के चलते इस पर कोई निर्णय नहीं ले सकता है। भारत भविष्य में कहां से तेल खरीदेगा इस पर फैसला नई सरकार ही लेगी। इस बीच पेट्रोलियम मंत्री धर्मेद्र प्रधान और विदेश मंत्रालय ने आश्वस्त किया है कि देश में क्रूड की कोई दिक्कत नहीं होगी। सरकार की मानें तो भारत ईरान के बदले दूसरे देशों से तेल खरीदने की योजना तैयार कर चुका है। नई सरकार के बनने के बाद न सिर्फ अमेरिका बल्कि ईरान से भी भारत को बात करनी होगी। 2018 की शुरुआत में जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान पर नए सिरे से प्रतिबंध लागू करने का ऐलान किया था, तभी से भारत व ईरान के बीच तेल कारोबार को बनाए रखने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था पर बात हो रही है। इस व्यवस्था के तहत कुल आयात बिल के एक बड़े हिस्से का भुगतान भारतीय रुपये में करना भी था। भारत इस बारे में ईरान के अलावा यूरोपीय देशों से भी बात कर रहा था कि भुगतान की कोई दूसरी व्यवस्था हो जाए। लेकिन इस बातचीत को अभी तक अंजाम पर नहीं पहुंचाया जा सका है। यहां पर एक और बात ध्यान में रखने वाली है, वो ये कि भारत ने ईरान के चाबहार बंदरगाह पर 1600 करोड़ रुपये का निवेश किया है। ऐसे में अमेरिका का लिया गया फैसला भविष्य में कहीं भारतीय निवेश के लिए नुकसानदेह साबित न हो जाए। ईरान से तेल नहीं खरीद पाने का असर भारत पर कई तरीके से पड़ेगा। एक तो भारत अपने एक विश्वसनीय तेल आपूर्तिकर्ता देश से हाथ धो बैठेगा, वहीं महंगा क्रूड खरीदने से देश के तेल आयात बिल में भी भारी इजाफा हो सकता है।
पिछले वित्त वर्ष (2018-19) में भारत का तेल आयात बिल तकरीबन 125 अरब डॉलर का था जो वर्ष 2017-18 के मुकाबले 42 फीसद ज्यादा था। अगर क्रूड इस वर्ष महंगा हुआ तो तेल आयात बिल और बढ़ जाएगा। तमाम प्रतिबंधों के बावजूद वर्ष 2017-18 में भारत ने ईरान से 2.26 करोड़ टन तेल खरीदा था जो वर्ष 2018-19 में बढ़ कर 2.4 करोड़ टन हो गया था। इस दौरान देश का कुल तेल आयात 22 करोड़ टन से बढ़ कर 22.86 करोड़ टन हो गया था। चालू वर्ष में इसके बढ़ने के पूरे आसार हैं। क्योंकि एक तो भारत के कुल तेल खपत में घरेलू उत्पादन की हिस्सेदारी घटती जा रही है। छह वर्ष पहले भारत अपनी जरूरत का 74 फीसद तेल बाहर से आयात करता था, जबकि वर्ष 2017-18 में 83 फीसद आयात किया गया था। चालू वित्त वर्ष में घरेलू उत्पादन में कोई वृद्धि होने की संभावना नहीं है, जबकि आर्थिक विकास दर 7 फीसद से ज्यादा रहने की वजह से मांग में भी इजाफा होने के आसार हैं। ईरान से आयातित तेल की कमी भारत को इसलिए भी महसूस होगी कि वह हमेशा जरूरत के वक्त भारत को आसान शर्तो पर तेल की आपूर्ति करता रहा है।
ईरान के तेल बाजार से हट जाने की वजह से क्रूड की कीमत में तेजी आने लगी है, इसका भी खामियाजा भारत को उठाना पड़ेगा। महंगा क्रूड खरीदने से तेल आयात बिल बढ़ता है जिसका असर चालू खाते में घाटे (आयात व निर्यात पर खर्च राशि का अंतर) के रूप में दिखाई देता है। चालू खाते में घाटा बढ़ने का असर देश में महंगाई पर भी पड़ता है और डॉलर के मुकाबले रुपया भी कमजोर होता है। सोमवार को ही डॉलर के मुकाबले रुपये में 32 पैसे की गिरावट के लिए क्रूड के महंगा होने की संभावना को ही जिम्मेदार ठहराया गया था। ईरान पर पूरा प्रतिबंध लागू होने से पहले वेनेजुएला और लीबिया जैसे प्रमुख तेल उत्पादक देशों से भी आपूर्ति प्रभावित हो गई है। साथ ही तेल उत्पादक देशों के संगठन (ओपेक) ने मार्च, 2019 में ही कुल तेल उत्पादन में 15 लाख बैरल प्रति दिन की कटौती करने का फैसला किया है। इससे कच्चे तेल की आपूर्ति बाधित होने की संभावना जताई जा रही है। सोमवार को कच्चे तेल की कीमत छह महीनों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई थी। बहरहाल, भारत ने दूसरे वैकल्पिक बाजारों से बात शुरू कर दी है। सउदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), ईराक, मैक्सिको और अमेरिका से ज्यादा क्रूड खरीदा जा सकता है लेकिन इन्हें ज्यादा कीमत चुकानी पड़ेगी।