अमेरिका की चेतावनी के बावजूद भारत ने आखिरकार रूस से एस-400 वायु रक्षा प्रणाली खरीदने के लिए पांच अरब डॉलर के समझौते पर शुक्रवार को हस्ताक्षर किए. इस मिसाइल सिस्टम की डील को लेकर वर्ष 2015 से भारत-रूस के बीच बात चल रही थी.
कई देश रूस से यह सिस्टम खरीदना चाहते हैं क्योंकि इसे अमेरिका के थाड (टर्मिनल हाई ऑल्टिट्यूड एरिया डिफेंस) सिस्टम से बेहतर माना जाता है. हैरान करने वाली बात यह है कि दोनों देशों के बीच हुए इस बड़े समझौते का दोनों देशों के नेताओं ने अपनी प्रेस वार्ता में जिक्र तक नहीं किया.
एस-400 बनाने वाली कंपनी के साथ रिलायंस की है डील
साल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मास्को यात्रा के दौरान अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस ने रूस के अल्माज-एंटी के साथ 6 अरब डॉलर के संभावित विनिर्माण और रख-रखाव सौदे पर हस्ताक्षर किए थे. बता दें कि अल्माज-एंटी रोसोबोरोनक्सपोर्ट की सहायक कंपनी है और एस-400 की प्रमुख निर्माता है.
24 दिसंबर 2015 को रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड ने अपनी एक प्रेस रिलीज में इसका जिक्र किया था. इसमें लिखा था कि डीएसी ने एस-400 वायु रक्षा मिसाइल सिस्टम के अधिग्रहण को मंजूरी देकर 6 अरब डॉलर के व्यापार का मौका दिया है.
भारत की रिलायंस डिफेंस लिमिटेड और रूस की वायु रक्षा मिसाइल सिस्टम की प्रमुख निर्माता कंपनी अल्माज-एंटी ने भारत के साथ संयुक्त रूप से काम करने का फैसला किया है.
जानकारी के मुताबिक रिलायंस ग्रुप के चेयरमैन अनिल ने प्रेस रिलीज में कहा था कि हमारी प्रस्तावित साझेदारी दोनों देशों के बीच रणनीतिक संबंधों के लिए मील का पत्थर साबित होगी. वहीं अल्माज-एंटी के उपाध्यक्ष ने कहा था कि रिलायंस डिफेंस के साथ काम करने से भविष्य में भारत की सुरक्षा बलों की जरूरतों को पूरा करने के लिए दोनों कंपनियों को नई दिशा मिलेगी.
बता दें कि इस डील में रिलायंस इंडस्ट्रीज का नाम आने से मोदी सरकार की मुसीबतें बढ़ सकती हैं. क्योंकि राफेल मुद्दे पर रिलांयस का नाम आने के बाद से विपक्ष लगातार मोदी सरकार को घेर रहा है. वहीं अब भारत-रूस की इस डील में रिलायंस का नाम आने पर विपक्ष इसे भी मुद्दा बना सकता है.
अमेरिका लगा सकता है बैन
अमेरिका लगातार रूस से किसी भी तरह की रक्षा खरीद करने पर बैन लगाने की धमकी देता रहा है. अमेरिका ने कहा है कि रूस के साथ भारत की यह डील उनके CAATSA सेक्शन 231 के तहत आती है जिसके चलते इस डील पर वह बैन लगा सकता है. दरअसल, अमेरिका ने काउंटरिंग अमेरिकाज एडवाइजरीज थ्रू सैंक्सन्स एक्ट (CAATSA) के जरिए रूस से किसी भी तरह की रक्षा खरीद पर रोक लगा रखी है.
हालांकि इससे पहले अमेरिकी ने इस डील पर नरम तेवर दिखाते हुए कहा था कि रूस पर प्रतिबंध को लागू करने का मकसद अपने सहयोगियों और पार्टनरों की सैन्य क्षमताओं को डैमेज करना नहीं है. हम किसी भी तरह के प्रतिबंध के फैसले को पूर्वाग्रह नहीं बना सकते हैं.
पैसों के भुगतान के तरीके पर भी हो रही चर्चा
पैसों के भुगतान के तरीके पर हो रहा विचार है. दोनों देश चाहते हैं कि इस डील पर पैसों का भुगतान इस तरह हो कि अमेरिका उस पर किसी तरह का कोई बैन ना लगा सके. भुगतान ऐसा होना चाहिए जिससे अर्थव्यवस्था, व्यापार और सुरक्षा बिना किसी रुकावट और परेशानी के चलता रहे. दरअसल मैन्युफैक्चरर कंपनी अल्माज-एंटी अमेरिकी प्रतिबंधों की लिस्ट में है, जिसकी वजह से इस पर बैंकिंग लेनदेन पर रोक लगी हुई है. इस डील को लेकर भारत को भले ही अमेरिका की तरफ से रियायत मिल जाए लेकिन कंपनी पर लगा बैन इस डील के आड़े आ सकता है.
S-400 पाने वाला भारत तीसरा देश
-रूस के साथ S-400 डील होने के बाद भारत दुनिया का तीसरा देश होगा जिसके पास यह मिसाइल सिस्टम है. इसके पहले चीन और तुर्की के साथ रूस यह डील कर चुका है.
-सऊदी अरब के साथ भी इस मिसाइल सिस्टम की खरीद को लेकर बात चल रही है.
-इस डील को लेकर पाकिस्तान काफी चिंतित है. अभी हाल में वहां के सूचना मंत्री फवाद चौधरी ने रूस के साथ इस डील को बड़ी परेशानी बताया. चौधरी ने कहा, ‘भारत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल पाकिस्तान के खिलाफ कर रहा है. रूस के भारत के साथ अच्छे रिश्ते हैं लेकिन पाकिस्तान भी रूस के करीब आ रहा है. इसलिए रूस को केवल भारत के साथ ही यह डील दांव पर नहीं लगानी चाहिए.