साल 2017 में बिटक्वाइन छाया रहा. बिटक्वाइन की कीमत खूब बढ़ी और एक समय तो यह 13 लाख रुपये तक पहुंच गई, जिससे निवेशकों से लेकर अर्थशास्त्री तक इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाए. हालांकि, इसके बाद इसकी कीमत घटकर करीब आधी हो चुकी है. लेकिन जहां बिटक्वाइन को बदनाम करेंसी माना जा रहा है, वहीं इसकी मूल टेक्नोलॉजी ‘ब्लॉकचेन’ को भविष्य की अर्थव्यवस्था के लिए क्रांतिकारी माना जा रहा है.
ब्लॉकचेन की लोकप्रियता पिछले साल ही बढ़नी शुरू हो गई है, लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि यह बैंकिंग से लेकर, आधार और चुनाव प्रणाली तक भविष्य के भारत में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है.
क्या है ब्लॉकचेन
ब्लॉकचेन असल में ऐसे विकेंद्रित डिजिटल लेजर होते हैं जो सभी तरह के क्रिप्टो करेंसी के आधार होते हैं. डिजिटल सूचनाओं को कॉपी नहीं बल्कि वितरित करने की सुविधा से ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी ने नए तरह के इंटरनेट का आधार तैयार किया है. वैसे तो इसका ईजाद डिजिटल करेंसी बिटक्वाइन के लिए किया गया था, लेकिन अब इसके दूसरे तरह के इस्तेमाल पर फोकस किया जाने लगा है. डिस्ट्रिब्यूटेड पब्लिक लेजर के रूप में कार्य करते हुए ब्लॉकचेन लेनदेन का एक विकेंद्रित और पारदर्शी तरीका उपलब्ध करता है और इसमें सुरक्षा का स्तर भी काफी ऊंचा होता है. जानकारों का कहना है कि यह सिर्फ डिजिटल करेंसी ही नहीं बल्कि उससे कहीं आगे की चीज है. यह इंटरनेट से परस्पर जुड़ी दुनिया में और विस्तार कर सकता है.
क्या हैं फायदे
इंटरनेट और ब्लॉकचेन की जोड़ी का फायदा यह होगा कि इससे डाटा की हैंकिंग का जोखिम कम हो जाएगा, क्योंकि इसके तहत लाखों कंप्यूटर्स के एक चेन के द्वारा डाटा स्टोर किए जा सकेंगे. ब्लॉकचेन की एक प्रमुख विशेषता यह होती है कि यह विकेंद्रित प्रकृति का होता है. बैंकों, हेल्थेकेयर, सरकारी एजेंसियों में रिकॉर्ड रखने के लिए अभी जिस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल होता है, उसके विपरीत ब्लॉकचेन में लेजर्स में बदलाव के लिए किसी इंटरमिडियरी की जरूरत नहीं होती है.
किसी ब्लॉकचेन में हर यूजर अपने पर्सनल ब्लॉक का कस्टोडियन होता है और जब भी किसी ब्लॉक में बदलाव किया जाता है तो लेजर में अपने आप बदलाव हो जाता है. लेकिन यदि कोई दूसरा फर्जी व्यक्ति इसमें बदलाव करना चाहे और किसी ब्लॉक के बारे में उसके द्वारा डाली गई सूचना मैच नहीं करती तो लेजर अपडेट नहीं होगा. इस वजह से यह टेक्नोलॉजी काफी सुरक्षित है.
ब्लॉकचेन अभी शुरुआती दौर में है, लेकिन इसे मुख्यधारा में लाने का प्रयास शुरू हो गया है. क्रिप्टो करेंसीज के अलावा कई तरह के उद्योगों में ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल का परीक्षण शुरू हो गया है. इसमें सबसे आगे बैंकिंग सेक्टर है. जालसाजी से बचने और अपने कारोबार में बेहतरी के लिए अगले वर्षों में ज्यादा से ज्यादा बैंक ब्लॉकचेन का इस्तेमाल करेंगे.
विदेश में कई बैंक मनी ट्रांसफर के लिए ब्लॉकचेन आधारित क्रिप्टोकरेंसी का परीक्षण कर रहे हैं. अमेरिका के मनी ट्रांसफर दिग्गज मनीग्राम ने इस बारे में रिपल से समझौता किया है. ऐसा माना जा रहा है कि ब्लॉकचेन आधारित रिपल जैसी टेक्नोलॉजी से क्रॉस बार्डर मनी ट्रांसफर का टाइम सिर्फ 2 से 3 सेकंड रह जाएगा. लागत और समय बचाने के लिए बैंकिंग के अलावा दूसरे कई सेक्टर भी ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी का परीक्षण शुरू कर चुके हैं.
भारत में क्या होगा बदलाव
अपने विकेंद्रित प्रकृति की वजह से ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी हमारे दैनिक जीवन में कई चीजों पर असर डाल सकती है. यह टेक्नोलॉजी काफी तेज, सुरक्षित और किफायती है. इसलिए डिजिटाइजेशन में यह भारत जैसे देशों में सरकारी विभागों के लिए काफी उपयुक्त साबित हो सकता है. आधार जैसी डिजिटल आधारित सुविधाओं में ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी काफी मददगार हो सकती है. आधार में डाटा लीक होने को लेकर काफी हो-हल्ला होता रहा है, लेकिन ब्लॉकचेन के इस्तेमाल से यह समस्या दूर हो सकती है. आधार का डाटा विकेंद्रित होता है, लेकिन ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी से इसके गलत हाथों में पड़ने की संभावना कम हो जाएगी.
इस बारे में प्रयास भी शुरू हो गए हैं. बिजनेस लाइन अखबार की एक खबर के अनुसार कर्नाटक सरकार ने ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल का निर्णय लिया है और वह इसके शासन में इस्तेमाल पर श्वेतपत्र भी लाने वाली है.
चुनाव खर्च में आएगी कमी
ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी भारत में वोटिंग की दुनिया में भी क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है. एक अनुमान के अनुसार साल 2014 के लोकसभा चुनाव में 3,424 करोड़ रुपये खर्च हुए थे, लेकिन अगर भविष्य के चुनाव में ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल हुआ तो चुनाव खर्च कम हो जाएंगे और यह काफी सुरक्षित भी हो जाएगा. इस टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से वोटरों के मामले में जालसाजी नहीं हो पाएगी. यही नहीं, ऐसी व्यवस्था भी बनाई जा सकती है, जिसमें वोटर अपने घर से ही अपने मोबाइल से ही वोट डाल सके.