राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का बंगला बचाने के लिए गहलोत सरकार फिर से हाईकोर्ट पहुंच गई है. आदेश के बावजूद वसुंधरा से बंगला खाली नहीं कराने पर राजस्थान हाईकोर्ट ने प्रदेश के मुख्य सचिव को अवमानना का नोटिस दिया था.
अवमानना की नोटिस पर मुख्य सचिव राजेश स्वरूप ने हाईकोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा है कि आवंटन के जिन नियमों को राजस्थान हाईकोर्ट ने गलत बताया था, वे नियम अब लागू नहीं होते. उस कानून को ही खत्म कर दिया गया है और वसुंधरा राजे को नया कानून बनाकर बंगला आवंटित किया जा रहा है, इसलिए आदेश की अवहेलना का मामला नहीं बनता है.
वसुंधरा सरकार ने राजस्थान मिनिस्टर सैलरी एक्ट 2017 के तहत राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्रियों को बंगला समेत बहुत सारी सुविधाएं देने का प्रावधान किया था, जिसे राजस्थान हाईकोर्ट ने गलत माना था. राजस्थान सरकार फंसी तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने वसुंधरा राजे के 13 नंबर के सिविल लाइंस बंगले को बचाने के लिए 1 अगस्त 2020 के दिन राजस्थान विधानसभा एक्ट 1956 की धारा 6 में उप धारा 6 जोड़ दी, जिसके तहत किसी भी सीनियर एमएलए को विधानसभा बंगला आवंटित कर सकती है.
इसी आधार पर राजस्थान के मुख्य सचिव ने राजस्थान हाईकोर्ट में कहा कि सीनियर विधायक होने की वजह से हमने नहीं, बल्कि विधानसभा ने उनको बंगला आवंटित किया है. इस मामले में याचिकाकर्ता मिलापचंद डांडिया की ओर से वकील विमल चौधरी और योगेश टेलर ने कहा कि 4 सितंबर 2019 को ही अदालत ने पूर्व मुख्यमंत्रियों को सुविधाएं देने के संबंध में आदेश रद्द कर दिए थे. उसके बावजूद कोर्ट के आदेश की अवहेलना कर सरकार ने वसुंधरा राजे का बंगला बचाए रखा है. इसलिए अवमानना का मामला बनता है. राजस्थान हाईकोर्ट ने अब इस मामले की सुनवाई जनवरी 2021 तक टाल दी है.
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