किसी ने कभी कहा था कि कहो कि लब आज़ाद हैं. पर आज कहना पड़ रहा है कि चीखो… कि हम ख़ामोश हैं. आठ साल की एक बच्ची के साथ हफ्ते भर तक आठ लोग बलात्कार करते हैं. यहां तक कि आखिर में जब उस बच्ची का कत्ल करने जा रहे थे, तब एक पुलिस अफसर उनसे कहता है कि कुछ देर और रुक जाओ मैं भी इसे नोच-खसोट लूं फिर मार देना. दो महीने हो गए इस वारदात को, पर अब तक हम सब खामोश हैं.
उधर, बिना सोचे बिना देखे यूपी पुलिस बस एनकाउंटर पर एनकाउंटर किए जा रही है. पर उसी यूपी में एक विधायक पर बलात्कार का इलज़ाम लगता है. शिकायत करने पर पीड़ित का पिता थाने में मारा जाता है. उस पीड़ित और उसके परिवार की चीख सब सुनते हैं, पर फिर भी हम खामोश हैं. क्या कीजिए हम और आप तो वैसे भी हमेशा खामोश ही रहते हैं. बचे नेता और सरकार, तो उपवास के बहाने सब के सब मौन व्रत पर चले गए हैं.
बच्ची से हैवानियत, MLA की दबंगई
देश में तीन बड़ी खबरें हैं. पहली एक दिन के उपवास पर बैठे नेताओं और सरकार की. दूसरी इंसानियत को शर्मसार कर देने वाले हैवानों और उनके हाथों मरने से पहले आखिरी घड़ी तक नोंची-खसोटी गई आठ साल की मासूम बच्ची की. और तीसरी उन्नाव के दबंग विधायक की ख़बर जो बलात्कार का इलज़ाम सिर पर लिए पूरे लखनऊ का चक्कर लगाता है और सरकार उसके सामने नतमस्तक नजर आती है.
हैवानियत पर सरकार का मौनव्रत
सचमुच आजकी राजनीति को उपवास की ही ज़रूरत है. उपवास होगा तो पेट खाली होगा. खाली पेट बोल वचन कम ही निकलते हैं. हमारे नेता होशिय़ार हैं और सरकार डेढ़ होशियार. तभी तो उपवास के बहाने सबके सब मौन व्रत पर चले गए हैं. कोई बोल ही नहीं रहा कि कठुआ की आठ साल की बच्ची हैवानों के हवस का शिकार हुई है और हैवान का कोई धर्म य़ा ज़ात नहीं होती. इसलिए इस हैवानियत को धर्म के चश्मे से नहीं बल्कि सिर्फ और सिर्फ कानून के चश्मे से देखें. उपवास के नाम पर मौन व्रत है इसलिए नेता और सरकार ये भी नहीं बोल रहे है कि बलात्कार के इल्ज़ाम में घिरे उन्नाव के विधायक के साथ क्या सुलूक होना चाहिए.
चार्जशीट में खुलासा- मंदिर में होता रहा बच्ची से रेप
गुस्सा नहीं हैरानी होती है, लोगों की उस सोच पर जो रूह को छलनी कर देन वाली गैंग रेप जैसी वारदात में भी धर्म और मज़हब ढूंढ लेते हैं. लोग कहते हैं कि उस बच्ची के बलात्कारियों को छोड़ दो, जिन्होंने कठुआ के एक मंदिर में अपनी हवस मिटाई थी. दिल पर हाथ रख कर कहिएगा. ऐसे लोगों को धर्म के नाम पर छोड़ भी दें तो क्य़ा इसके अपने ही धर्म के लोग या इसके अपने करीबी-रिश्तेदार अपने ही घर की किसी बच्ची को इनके साथ अकेला छोड़ने की हिम्मत करेंगे? इससे पहले कि आप जवाब दें ज़रूरी है कि उस बच्ची की कहानी एक बार ज़रूर सुन लीजिए. और ये कहानी सिर्फ कहानी नहीं है बल्कि कठुआ की ज़िला अदालत में दर्ज चार्जशीट का हिस्सा है. यानी ये कानूनी दस्तावेज़ है.
मंदिर के सेवादार संजीराम की खौफनाक साजिश
कठुआ के गांव रासना के आसपास हाल के वक्त में अल्पसंख्यक बकरवाल समुदाय के कुछ परिवार आकर बस गए थे. इसी गांव के देवीस्थान मंदिर का सेवादार संजी राम इस समुदाय के लोगों को गांव से हटाना चाहता था. उसी ने ये पूरी साज़िश रची. राजस्व अधिकारी के पद से रिटायर संजी राम पड़ोस की 8 साल की एक बच्ची को रोज पशुओं को चराने के लिए जंगल जाते हुए देखता था. इसी के बाद उसके मन में उस बच्ची को लेकर पाप जागा. उस हैवान ने अपने नाबालिग भतीजे को भी इस पाप में शामिल कर लिया.
बच्ची को पीटते रहे, रेप करते रहे, नशा देते रहे
10 जनवरी 2018 की बात है. भतीजा जानवरों को खोज रही बच्ची पर जंगल में टूट पड़ता है. उसे जंगल के ही एक मंदिर में लेकर पहुंचता है. कोर्ट में दाखिल चार्जशीट के मुताबिक मंदिर के प्रार्थना कक्ष में ही वो बच्ची से रेप करता है. फिर वो अपने दोस्त मन्नू को भी बुला लेता है. दोनों फिर से रेप करते हैं. इसके बाद वो अपने चाचा को इसकी ख़बर देता है. संजी राम बेहोशी की दवा मंगवाता है और मंदिर पहुंचता है. दोनों बच्ची को पीटते, रेप करते, पीटते, रेप करते पीटते और फिर रेप करते. कई बार बेहोशी की हालत में भी वो रेप करते रहे.
रेप करने के लिए मेरठ से बुलाया दोस्त
12 जनवरी को बच्ची का पिता हीरानगर थाने पहुंचता है कि साहब तीन दिन से हमारी बेटी घर नहीं आई. विशेष पुलिस अधिकारी दीपक खजूरिया को जांच में लगाया जाता है. उसके साथ टीम में एएसआई प्रवेश कुमार, सुरिंदर कुमार और हेड कॉन्स्टेबल तिलक राज भी शामिल थे. इस बीच संजी का भतीजा मेरठ के अपने दोस्त विशाल जंगोत्रा को फोन करके कहता है कि अगर वो आठ साल की बच्ची का रेप करना चाहता है, तो फौरन कठुआ आ जाए. चार्जशीट के मुताबिक विशाल अगली ही ट्रेन से कठुआ पहुंचता है और बेहोश बच्ची से रेप करता है.
पुलिसवाले भी बने हैवान, हत्या से पहले अधिकारी ने किया रेप
चार्जशीट के मुताबिक तब तक जांच अधिकारी दीपक खजूरिया लड़की का पता लगाते हुए मंदिर पहुंच जाता है. लेकिन वो सबको तुरंत गिरफ्तार करने की बजाय भतीजे के परिवार को ब्लैकमेल करने लगता है. चार्जशीट में लिखा है कि वो लड़के को बचाने के एवज में डेढ़ लाख रुपए भी वसूल करता है. इसके बाद जब वो मंदिर पहुंचता है, तो बच्ची बेहोश पड़ी होती है. संजीराम कहता है कि अब इसकी हत्या करनी होगी. इस पर जांच अधिकारी खजूरिया कहता है कि थोड़ी देर रुक जाओ. मैं भी कुछ कर लूं. इसके बाद वो पुलिस अधिकारी भी उस बच्ची से रेप करता है. उसके बाद सभी फिर से बारी-बारी आठ साल की उस मासूम के साथ सामूहिक बलात्कार करते हैं.
गला घोंटकर हत्या, पत्थर से कुचला था सिर
इसके बाद उसी हालत में उस बच्ची का गला घोंट कर उसे मार देते हैं. फिर उसके सिर को पत्थर से कुचला जाता है. और लाश जंगल में फेंक दिया जाता है. मासूम के साथ इतनी दरिंदगी कि किसी का दिल भी दहल जाए. चार्जशीट के तहत संजी राम, उसका बेटा विशाल, सब इंस्पेक्टर आनंद दत्ता, दो विशेष पुलिस अधिकारी दीपक खजुरिया और सुरेंद्र वर्मा, हेड कांस्टेबल तिलक राज और स्थानीय निवासी प्रवेश कुमार पर रेप, मर्डर और सबूत मिटाने के मामले दर्ज किए गए हैं.
क्या इंसान होने के नाम पर हम शर्मिन्दा नहीं
यह है कठुआ की पूरी कहानी. अब आप जवाब दीजिए. क्या सोच रहे हैं. मन भारी है? वाजिब है. लेकिन हम इसी दुनिया में रहते हैं. नाज करते हैं अपनी सभ्यता पर. हम कहते नहीं थकते कि दुनिया को तहज़ीब का शऊर हमने सिखाया और अब हम कहां पहुंच गए? इंसाफ हो भी जाए तो क्या है? इस कहानी को सुनते हुए आपकी तरह के लाखों लोगों के अंदर जो आदमी मरा है, उसकी सजा क्या होगी? काश… ताज़िरात-ए-हिंद की दफाओं में मरी हुई इंसानियत का भी कोई मरहम होता. कोई ऐसा जर्राह होता जो पीसकर बांध देता कोई ऐसी बूटी जो हमारे बच्चों को बुरी नजरों से बचा लेती. आदम की औलादें इतनी बुरी तो न थीं कभी कि हमें शर्म आती खुद को आदमी कहने पर.
गैंगरेप के आरोपी विधायक के समर्थन में ऐसा बयान!
कठुआ हो या उन्नाव. किसको दिखाएं अपना घाव. क्योंकि उन्नाव के रेप के आरोपी विधायक सेंगर के समर्थन में बरेली के बौरिया के एक विधायक अजीबो-गरीब बयान देते हैं. विधायक सुरेंदर सिंह कहते हैं कि मैं नहीं मानता की सेंगर ने बलात्कार किया होगा. क्योंकि तीन बच्चों की मां के साथ कोई भी व्यक्ति बलात्कार कैसे कर सकता है. एक ऐसा बयान जिसे सुरेंदर सिंह के घर की महिलाएं भी सुनना नहीं पसंद करेंगी. देश की महिलाओं की तो बात ही छोड़ दीजिए.
जाति, धर्म के नाम पर क्यों देते हैं वोट?
दरअसल, ये बयान सुरेंदर सिंह और सेंगर जैसे विधायकों की घटिया मानसिकता दिखाता है. कोई भी महिला इनके लिए क्या हैसियत रखती है. लेकिन क्या फर्क पड़ता है अगर ये ऐसा कह रहे हैं? लेकिन क्या इसमें सिर्फ संजी रम, सेंगर, सुरेंदर, विशाल, सेंगर या खजुरिया जैसे लोग ही दोषी हैं? क्या हम नहीं हैं इसके जिम्मेदार जो झूठ के कारोबार में अपना मुनाफा देखते हैं? लोगों के चाल और चरित्र को जानते हुए भी अपना वोट किसी ख़ास मकसद या किसी ख़ास फ़ायदे के लिए ऐसे लोगों की झोली में डाल देते हैं. और बदले में वह हमें शिक्षा से दूर रखते हैं. हमारे अधिकारों से हमें दूर रखते हैं. हमें धर्म और जाती के झगड़ों में उलझा देते हैं.
जब बच्ची को स्कूल छोड़ने जाएंगे, दिल धड़केगा
आइये कठुआ और उन्नाव की घटना को लेकर जोर जोर से चीखें. सत्ता को कोसें. नेताओं को गलियां दें. और घर परिवार में और समाज में यह दिखने की कोशिश करें कि देखिये कितनी मानवता है हममें. लेकिन सुबह जब अपनी बच्चियों को स्कूल बस स्टॉप तक छोड़ने जायेंगे तो दिल तो धडकेगा.
इंसानियत पर करें विश्वास
हम दुआ करते हैं कि कठुआ और उन्नाव के परिवारों पर जो हुआ वो हमारे और आपके परिवारों के साथ न हो. लेकिन अगर सिर्फ दुआ काफी नहीं है तो फिर हमें और आपको सोचना ही पड़ेगा. कि इसका इलाज क्या है. जितनी जल्दी हो सके हमें यह फैसला करना ही पड़ेगा कि हमारी बेचैनियों का इलाज हमें ही ढूंढना है. कोई सरकार. कोई नेता. कोई व्यवस्था हमारे हुकूक हमें नहीं दे सकती और इसके लिए हमें धर्म से… जाति की सियासत से.. ऊपर उठकर मानवता की एकता में विश्वास करना पड़ेगा.
संजी राम और सेंगर जैसे दरिंदों को मिलकर दें जवाब
हो सकता है कि कठुआ और उन्नाव की घटना कल तक सिर्फ कठुआ और उन्नाव की घटना थी. लेकिन… आज ये हर शहर और हर घर की घटना है. कठुआ की बच्ची सभी की बच्ची है. उन्नाव की महिला में भी वही खून है, जो हमारी महिलाओं के बदन में है. वह पिता जो कठुआ के जंगलों में भटक रहा था या लखनऊ के हुक्मरानों से अपनी बेटी के लिए न्याय मांग रहा था क्या उस पिता के बदन से रिश्ते खून में आपको अपना खून नहीं नज़र आता?. अगर वह खून आपका है तो हम यकीन दिलाते हैं कि आइन्दा किसी सेंगर किसी संजी राम की हिम्मत नहीं पड़ेगी जो बहनों और बेटियों की तरफ नज़र भी उठा सकें.