रक्त के लाल कण, श्वेत कण और बिंबाणुओं की त्रिवेणी का उद्गम स्रोत लाल अस्थि मज्जा (बोन मैरो) होती है। जैसे टकसाल और रक्षा उपकरणों की फैक्ट्रियां सुरक्षा कवच से घिरी होती हैं, उसी प्रकार रक्त कणों की टकसाल, लाल मज्जा, हड्डियों के कवच में स्थित होती हैं। हड्डियां अंदर से पोली होती हैं, हाथ-पांव की लंबी हड्डियों के शिरों, कूल्हे की चपटी हड्डी, पसलियों और स्टरनम के अंदर जालीनुमा भाग में लाल अस्थि मज्जा होती है। रक्त कणों की निर्माणशाला।
डॉ. श्रीगोपाल काबरा के मुताबिक, कुछ लिम्फोसाइट्स को छोड़कर सभी रक्त कण अल्पायु होते हैं। प्रतिदिन अरबों कोशिकाएं शहीद होती हैं। अतः अस्थि मज्जा में इनका निर्माण निरंतर चालू रहता है। जब यह टकसाल काम करना बंद कर देती है, तो रक्त कणों के अभाव में खून पानी हो जाता है। इसे ‘अप्लास्टिक एनीमिया’ कहते हैं, जो लाल अस्थि मज्जा के नष्ट होने से होता है।
रक्त कणों की त्रिवेणी का उद्गम स्रोत आदि कोशिकाएं होती हैं, जिन्हें ‘स्टेम सेल’ कहते हैं। तीन स्टेम सेल देवियां, जिनसे लाल रक्त कण, श्वेत रक्त कण और प्लेटलेट्स (बिंबाणु) उत्पन्न होते हैं। ये स्टेम सेल देवियां विलक्षण होती हैं। रक्त कणों को जन्म देने के साथ-साथ ये अपनी जैसी स्टेम कोशिकाओं का भी निर्माण करती हैं। क्रम चालू रहता है, निरंतरता बनी रहती है।
स्टेम सेल देवियों के अपने-अपने इष्ट देव होते हैं। लाल रक्त कण बनाने वाली देवी का इष्ट देव एरिथ्रोपाटीन किडनी में होता है, तो प्लेटलेट बनाने वाली देवी का इष्ट देव थ्रोम्बापोइटीन लिवर में। श्वेत कण देवी के दो इष्ट देव, कॉलोनी स्टिमुलेटिंग फैक्टर और इंटरल्यूकिंस, अस्थि मज्जा में ही स्थित होते हैं। स्टेम देवियां इनकी आश्रित होती हैं, जो इनके अभाव में निष्क्रिय हो जाती हैं। अपने इष्ट देव के प्रभाव से मुक्त स्टेम कोशिका के पथभ्रष्ट होने पर उस कुल का कैंसर हो जाता है। श्वेत कणों के रक्त कैंसर को ‘ल्यूकेमिया’ कहते हैं।
अस्थि मज्जा की कुछ स्वस्थ आदि कोशिकाएं (स्टेम सेल) वहां से छिटककर रक्त में बहती रहती हैं। देवदूत की तरह पूरे शरीर का भ्रमण करती हैं। आधुनिक उपकरणों से आज उन्हें रक्त से अलग कर इकट्ठा किया जा सकता है। उन्हें शरीर के बाहर डीप फ्रीज कर लंबे समय तक सुरक्षित रखा जाता है। अस्थि मज्जा के कैंसर (रक्त कैंसर) में वहां की विकृत कैंसर जनक स्टेम कोशिकाओं को नष्ट कर उसी व्यक्ति की सुरक्षित स्वस्थ कोशिकाओं को रक्त के माध्यम से मज्जा में वापस स्थापित किया जाता है। यही है ओटोलोगस (स्वयं की) स्टेम सेल ट्रांसप्लांट।