इस बार ब्रिटेन का चुनाव फिर से कुछ बिंदुओं पर सिमटकर रह गया। इसी का नतीजा ये हुआ कि इस बार फिर ब्रिटेन में हुआ चुनाव ब्रेग्जिट चुनाव में बदल गया। यह ब्रिटेन में पिछले पांच वर्षों में हुआ तीसरा चुनाव था। यह संकट तब शुरू हुआ था, जब डेविड कैमरून प्रधानमंत्री थे। उन्होंने सोचा था कि जनमत संग्रह से इस संकट का हमेशा के लिए हल निकाला जा सकता है, लेकिन उसके बाद देश दो प्रधानमंत्रियों को जाते देख चुका है, और अब तीसरे प्रधानमंत्री को नया जानदेश मिला है।
लोग चाहते हैं कि 2016 में जो संकट शुरू हुआ था, बोरिस जॉनसन उसे हल कर दें। किंग्स कॉलेज, लंदन के प्रोफेसर हर्ष वी.पंत का कहना है कि बोरिस जॉनसन ने यहां रह रहे भारतीयों से भी तमाम वायदे किए हैं जिसकी वजह से उनको जीत हासिल हुई है, इसके अलावा कई अन्य मुद्दे भी है जिसकी वजह से उनको जीत हासिल हुई है अब देखना ये है कि बोरिस इन मतदाताओं की उम्मीदों पर कितना खरा उतर पाते हैं।
जॉनसन का पूरा जोर ब्रेग्जिट पर था, लेकिन उनकी विश्वसनीयता का सवाल हमेशा बना रहा। उन्हें एक ऐसे चतुर नेता के रूप में देखा जाता है, जो अपनी महत्वाकांक्षाओं के लिए रिश्ते बनाता है और बिगाड़ भी लेता है। दूसरी ओर, जेरेमी कॉर्बिन की ब्रेग्जिट पर कोई स्पष्ट सोच नहीं थी। वह तात्कालिक जरूरतों के हिसाब से अपना पक्ष बदलते रहते थे। जो लोग यूरोपीय संघ के साथ रहना चाहते हैं और जो नहीं रहना चाहते, दोनों ने ही जेरेमी कॉर्बिन को नुकसान पहुंचाया।
ऐसा माना जा रहा है कि अब बोरिस के जीतने के बाद ब्रेग्जिट की प्रक्रिया तेज हो जाएगी, लेकिन कुछ मुश्किल सवाल भी सिर उठाएंगे। स्कॉटिश नेशनल पार्टी की नेता और स्कॉटलैंड की फर्स्ट मिनिस्टर निकोला स्टर्जेअन ने कह दिया है कि स्कॉटलैंड का संदेश स्पष्ट है। स्कॉटलैंड बोरिस जॉनसन की कंजर्वेटिव सरकार को नहीं चाहता, प्रधानमंत्री को यह जनादेश नहीं है कि वह स्कॉटलैंड को यूरोपीय संघ से बाहर ले आएं।
यह पार्टी एक स्वतंत्र जनमत-संग्रह के पक्ष में दिखती है। ब्रिटिश जनता भले चाहती हो कि ब्रेग्जिट संकट जल्दी टल जाए, लेकिन ब्रिटेन का राजनीतिक भविष्य अभी संघर्ष का विषय है। बोरिस जॉनसन ने भले ही बड़ी जीत हासिल कर ली हो, लेकिन उनकी चुनौतियों का सिलसिला अभी खत्म नहीं हुआ है।
ब्रिटेन और यूरोपीय संघ की भूमिका वाले सतत ड्रामे से थके ब्रिटिश मतदाताओं ने बोरिस जॉनसन को एक और मौका दे दिया, ताकि वह ब्रेग्जिट पर काम कर सकें। इस बार कंजर्वेटिव को मजबूत जनादेश मिला है। ब्रेग्जिट ने एक तरह से ब्रिटेन का नया राजनीतिक नक्शा खींच डाला है। इस वजह से ही कुछ लोगों ने कुछ महीने पहले यह कल्पना की थी और यह आशा भी कि तीन साल से जारी संकट को किनारे रखकर बेहतर भविष्य की ओर बढ़ा जा सकता है।
जॉनसन से पहले प्रधानमंत्री रहीं थेरेसा मे ने भी 2017 में चुनाव कराया, ताकि उन्हें व्यापक जनादेश मिल जाए, लेकिन बढ़ने की बजाय उनकी सीटें घट गईं। नतीजा यह हुआ कि उन्हें डेमोक्रेटिक यूनियनिस्ट पार्टी का समर्थन लेना पड़ा ताकि उनकी अल्पमत सरकार चल सके। जब थेरेसा के ब्रेग्जिट वापसी समझौते को ब्रिटिश संसद ने तीसरी बार खारिज कर दिया, तब उन्हें इस्तीफा देना पड़ा और जॉनसन ने कार्यभार संभाला।