देश की सामाजिक-आर्थिक अवस्था का हवाला देते हुए भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के चेयरमैन रजनीश कुमार ने बृहस्पतिवार को कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) के व्यापक निजीकरण का यह माकूल समय नहीं है। 
 
एटीएम में कैश किल्लत समस्या नहीं है
देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक के चेयरमैन रजनीश कुमार ने आज कहा कि कुछ राज्यों में सामने आ रही नकदी की कमी की समस्या का समाधान कर लिया जायेगा। इन राज्यों में नकदी भेजी जा रही है। कुमार ने कहा कि कुछ इलाके ही ऐसे हैं जहां नकदी की कमी से एटीएम मशीनें चलाने में दिक्कत आ रही है या जहां कुछ विशेष तरह के नोटों की कमी है। 
कुमार ने यहां पत्रकारों से कहा, ” यह कोई सभी क्षेत्रों में नकदी की कमी वाली समस्या नहीं है।  यह तेलंगाना और बिहार जैसे इलाकों में हैं।  हमें उम्मीद है कि यह समस्या कल तक सुलझ जाएगी क्योंकि नकदी भेजी जा रही है और यह इन राज्यों में आज शाम तक पहुंच जाएगी।
इस बीच, सरकारी अधिकारियों ने कहा कि उन इलाकों जहां पिछले तीन दिन के दौरान मांग में जोरदार तेजी आई है वह नकदी पहुंचाने के लिए विशेष प्रबंध किए गए हैं। कुल 2.2 लाख एटीएम में से 86 प्रतिशत से अब नकदी मिल रही है।  कल तक 80 प्रतिशत एटीएम परिचालन में थे जबकि मंगलवार को सिर्फ 60 प्रतिशत एटीएम काम कर रहे थे। 
बैंकों के निजीकरण अच्छा नहीं
निजीकरण से हमेशा अच्छा ही नहीं होता और मालिकाना हक कोई मायने नहीं रखता, क्योंकि निजी तथा सार्वजनिक दोनों ही क्षेत्रों में अच्छी तथा खराब कंपनियां मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि बैंकिंग को लेकर मेरा यही विचार है कि वर्तमान में भारत की सामाजिक आर्थिक अवस्था सरकारी बैंकों के व्यापक निजीकरण के माकूल नहीं है। 
कुमार ने यहां माइंडमाइन समिट 2018 में कहा कि हो सकता है कि अगले 50 वर्षों में आप विकास के उस स्तर तक पहुंच जाएं, अगर आप लगातार वर्तमान रफ्तार से विकास करते रहें। सरकारी बैंक वाणिज्यिक इकाइयों से थोड़ा बढ़कर है, क्योंकि उन्हें सामाजिक उत्तरदायित्वों को पूरा करना होता है और उन्होंने इसे अच्छे तरीके से किया है। उल्लेखनीय है कि कुछ उद्योग संगठनों ने कहा है कि सरकार को सरकारी बैंकों के निजीकरण पर विचार करना चाहिए, क्योंकि पिछले 11 वर्षों के दौरान इन बैंकों में 2.6 लाख करोड़ रुपये से अधिक के पुन: पूंजीकरण की उनकी आर्थिक हालत को सुधारने की दिशा में सीमित भूमिका रही है। 
पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) में 13,000 करोड़ रुपये से अधिक का घोटाला सहित कई घोटालों के सामने आने के बाद मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन तथा नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया सहित कई विशेषज्ञों ने सरकारी बैंकों के निजीकरण पर जोर दिया है।