इस्लामपुर मलिक सराय स्थित पान अनुसंधान केंद्र में औषधीय और सुगंधित पौधों की खेती को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के तहत अश्वगंधा की खेती का सफल प्रदर्शन किया गया है।
अश्वगंधा भारतीय पारंपरिक चिकित्सा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसका प्रयोग तनाव कम करने, ऊर्जा बढ़ाने और कई आयुर्वेदिक दवाओं के निर्माण में किया जाता है।
केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. एसएन दास ने दैनिक जागरण को बताया कि बिहार की सूखी, पथरीली और ऊंची जमीन अश्वगंधा की खेती के लिए बेहद उपयुक्त है।
अश्वगंधा से 38 से 51 प्रतिशत तक अधिक कमाई
उन्होंने बताया कि धान, गेहूं और मक्का जैसी पारंपरिक फसलों की तुलना में अश्वगंधा 38 से 51 प्रतिशत तक अधिक शुद्ध आय दे सकती है, जिससे किसानों की आमदनी में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है। अश्वगंधा को “इंडियन जिनसेंग” और “विंटर चेरी” के नाम से भी जाना जाता है।
इसे आयुर्वेद में प्रमुख जड़ी-बूटी मानी जाती है। इसकी जड़ें और पत्तियां तनाव कम करने, नींद सुधारने, शारीरिक क्षमता बढ़ाने तथा कई स्वास्थ्य लाभों के लिए इस्तेमाल होती हैं।
डॉ. दास ने बताया कि केंद्र में अश्वगंधा की छह किस्मों पर शोध जारी है, जिनमें गुजरात आनंद अश्वगंधा, बल्लभ अश्वगंधा, जवाहर अश्वगंधा-20, जवाहर अश्वगंधा-134, राज अश्वगंधा-100 और अरका अश्वगंधा शामिल हैं।
किस्मों की पहचान के लिए किए गए परीक्षणों में पोशिता जैसी उच्च उपज देने वाली किस्म ने बेगूसराय में उत्कृष्ट परिणाम दिए। डॉ. दास के अनुसार, अश्वगंधा की खेती किसानों के लिए लाभकारी विकल्प बन सकती है और पारंपरिक फसलों की तुलना में बेहतर आर्थिक मुनाफा उपलब्ध करा सकती है।
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